इजरायल-ईरान संघर्ष: वैश्विक राजनीति में नया मोड़

इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता सैन्य तनाव
इजरायल-ईरान युद्ध: इजरायल और ईरान के बीच चल रहे सैन्य टकराव ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई दरारें पैदा कर दी हैं। दुनिया अब दो धड़ों में बंट चुकी है—एक तरफ इजरायल का समर्थन करने वाले देश हैं और दूसरी तरफ उसके विरोधी। यह संघर्ष केवल दो देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक रणनीतिक संतुलन को भी प्रभावित कर रहा है।
इजरायल के पक्ष में अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और इटली जैसे पश्चिमी देश खुलकर सामने आए हैं। उनका तर्क है कि ईरान तेजी से परमाणु हथियारों की दिशा में बढ़ रहा है, जो न केवल इजरायल बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है। इजरायल का कहना है कि उसका सैन्य अभियान वैश्विक सुरक्षा के लिए आवश्यक है। दूसरी ओर, चीन, इराक और यमन जैसे देश इजरायल की सैन्य कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं, उनका मानना है कि इससे क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी।
भारत का संतुलित दृष्टिकोण
भारत का क्या रुख है?
भारत ने इस घटनाक्रम में संतुलित और संयमित दृष्टिकोण अपनाया है। शनिवार को भारत ने स्पष्ट किया कि उसने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की उस बैठक में भाग नहीं लिया, जिसमें इजरायल की आलोचना की गई थी। विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि भारत तनाव कम करने के लिए कूटनीतिक और शांतिपूर्ण उपायों को प्राथमिकता देता है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस मुद्दे पर अपने ईरानी समकक्ष के साथ बातचीत की और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताओं को साझा किया। MEA ने कहा, 'हम आग्रह करते हैं कि बातचीत और कूटनीति के माध्यमों से ही तनाव को कम किया जाए।'
SCO में भारत की भूमिका
SCO में भारत की भूमिका
यह ध्यान देने योग्य है कि ईरान अब SCO का पूर्ण सदस्य है। 13 जून को SCO ने एक बयान में इजरायल के हमले की निंदा की थी और ईरान के परमाणु मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान सुझाया था। भारत ने इस बयान से खुद को अलग रखते हुए कहा कि वह अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के तहत दोनों पक्षों से संयम बरतने का आग्रह करता है।