इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस वर्मा पर गंभीर आरोप, हटाने की सिफारिश

जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच रिपोर्ट
नई दिल्ली। इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के निवास से नोटों की बरामदगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट जारी हो गई है। इस रिपोर्ट में तीन न्यायाधीशों की समिति ने जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया है और उन्हें हटाने की सिफारिश की है। समिति ने स्पष्ट किया कि जिस कमरे से पांच-पांच सौ के नोटों के बंडल मिले, वह जस्टिस वर्मा के परिवार के नियंत्रण में था और उनकी अनुमति के बिना कोई अन्य व्यक्ति उसका उपयोग नहीं कर सकता था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह घटना जस्टिस वर्मा के अनुचित आचरण को दर्शाती है, जो इतनी गंभीर है कि उन्हें पद से हटाया जाना चाहिए। घटना के समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत थे, जिन्हें विवाद के बाद इलाहाबाद स्थानांतरित किया गया। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों के पैनल ने 10 दिनों तक जांच की और 55 गवाहों से पूछताछ की।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा गठित इस समिति ने रिपोर्ट में कहा है, 'रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के आधार पर समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि मुख्य न्यायाधीश की 22 मार्च की चिट्ठी में लगाए गए आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं। ये आरोप इतने गंभीर हैं कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए।' रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 10 गवाहों ने जले हुए नोटों की गड्डियां देखी थीं, जिनमें दिल्ली फायर सर्विस और पुलिस के अधिकारी शामिल थे।
कमेटी ने यह भी कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक सबूत, जैसे स्टोर रूम के वीडियो और फोटो, गवाहों के बयानों की पुष्टि करते हैं। घटनास्थल पर लिए गए वीडियो का जस्टिस वर्मा ने खंडन नहीं किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जस्टिस वर्मा के दो घरेलू कर्मचारियों ने स्टोर रूम से जले हुए नोट निकाले थे। वायरल वीडियो में उनकी आवाज भी मेल खाती है। समिति ने यह भी कहा कि परिवार की अनुमति के बिना कोई भी वहां नहीं जा सकता था, इसलिए एक न्यायाधीश के स्टोर रूम में नोट रखना लगभग असंभव है, क्योंकि सुरक्षा गार्ड और एक पीएसओ हमेशा निगरानी रखते हैं।