उच्चतम न्यायालय ने भूस्खलन और बाढ़ पर केंद्र और राज्यों को भेजा नोटिस
भूस्खलन और बाढ़ की गंभीर स्थिति पर सुनवाई
भूस्खलन और अचानक बाढ़ के कारणों की जांच के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, केंद्र सरकार और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को नोटिस जारी किया है।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में अभूतपूर्व भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं देखी गई हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बाढ़ के दौरान बड़ी मात्रा में लकड़ी बहकर आई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि पेड़ों की अवैध कटाई हुई है। इसलिए, प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया गया है। सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से गंभीर स्थिति पर ध्यान देने और सुधारात्मक कदम उठाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि बड़ी संख्या में लकड़ी के लट्टे चारों ओर बिखरे हुए हैं, जो अवैध कटाई का संकेत देते हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पंजाब की तस्वीरें देखकर यह स्पष्ट है कि खेत और फसलें जलमग्न हैं, और विकास तथा राहत उपायों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। मेहता ने कहा कि हमने प्रकृति के साथ इतनी छेड़छाड़ की है कि अब यह हमें सबक सिखा रही है। वह पर्यावरण मंत्रालय के सचिव से बात करेंगे, जो राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थितियों को दोबारा नहीं होने दिया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई दो हफ्ते बाद के लिए स्थगित कर दी।
याचिका में भूस्खलन और बाढ़ के कारणों की विशेष जांच दल (एस.आई.टी.) से जांच कराने और कार्ययोजना बनाने का अनुरोध किया गया है, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाएं न हों।
पंजाब में अब तक 1900 से अधिक गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं, जिससे लगभग 4 लाख लोग प्रभावित हुए हैं और 4 लाख एकड़ से अधिक फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। हालाँकि बारिश में कुछ कमी आई है, लेकिन भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर डैम अभी भी खतरे के निशान के करीब हैं।
हिमाचल प्रदेश में बारिश और भूस्खलन के कारण 355 लोगों की जान चली गई है, 49 लोग लापता हैं और 400 से अधिक लोग घायल हुए हैं। 5000 से अधिक कच्चे और पक्के मकान गिर चुके हैं, और 1200 से अधिक सड़कें ठप्प हो चुकी हैं। हरियाणा में भी बाढ़ के कारण 2 लाख एकड़ से अधिक फसलें बर्बाद हो चुकी हैं, जिससे हजारों लोग प्रभावित हुए हैं।
प्रकृति के प्रकोप को बढ़ाने में इंसान की भी भूमिका है, लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है।
-इरविन खन्ना, मुख्य संपादक।