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उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में टेंडर प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का मामला

उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विभाग में टेंडर प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएँ सामने आई हैं। मंत्री और प्रमुख सचिव के करीबी फर्म को काम दिलाने के लिए नियमों की अनदेखी की गई है। ज्वाइंट डायरेक्टर राजीव राणा की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, जबकि 350 से अधिक कंपनियों को किनारे कर दिया गया। इस मामले में पार्थ सारथी सेन शर्मा की चुप्पी ने स्थिति को और संदिग्ध बना दिया है।
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उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में टेंडर प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का मामला

लखनऊ में टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विभाग में टेंडर प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएँ सामने आई हैं। यह सब कुछ मंत्री और प्रमुख सचिव के करीबी फर्म को काम दिलाने के लिए किया जा रहा है। अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा की चुप्पी ने इस मामले को और संदिग्ध बना दिया है। दरअसल, माध्यमिक शिक्षा विभाग ने मैन पॉवर सप्लाई के लिए एक टेंडर जारी किया था, जिसे नियमों के अनुसार एक फर्म को सौंपा गया था। लेकिन जब अधिकारियों की पसंदीदा फर्म को काम नहीं मिला, तो टेंडर को होल्ड कर दिया गया और 11 दिन बाद फिर से टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई, जिसमें अधिकारियों ने अपनी पसंदीदा फर्म को काम दे दिया। खास बात यह है कि चित्रकूट और झांसी मंडल के लिए निकाले गए इस टेंडर में पति-पत्नी की कंपनी को काम सौंपा गया। सूत्रों के अनुसार, यह सब एक प्रभावशाली नेता की बेटी के लिए किया गया है।


ज्वाइंट डायरेक्टर की भूमिका

ज्वाइंट डायरेक्टर राजीव राणा की संलिप्तता
ज्वाइंट डायरेक्टर राजीव राणा ने चित्रकूट और झांसी मंडल के लिए टेंडर प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन दोनों मंडलों का चार्ज उनके पास है। इस भ्रष्टाचार की पहली शिकायत टेंडर प्रक्रिया में सफल फर्म ने अपर मुख्य सचिव से की थी, लेकिन उन्होंने जांच का आश्वासन दिया। इसके कुछ दिन बाद, चहेती फर्म बालाजी इंटरप्राइजेज को काम दे दिया गया।


350 कंपनियों को किनारे किया गया

चहेती फर्म को प्राथमिकता
अधिकारियों ने अपनी पसंदीदा फर्म को काम देने के लिए सभी नियमों की अनदेखी की। इस टेंडर प्रक्रिया में 350 से अधिक कंपनियों ने भाग लिया था, जिनके दस्तावेज ऑनलाइन उपलब्ध थे। बालाजी इंटरप्राइजेज ने कागजात में गड़बड़ी की, लेकिन माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इसे नजरअंदाज कर दिया। इस कंपनी की बैलेंस शीट को टेंडर प्रक्रिया में दो अन्य कंपनियों के साथ साझा किया गया। इसके अलावा, कंपनी के डायरेक्टर की पत्नी ने भी एक अन्य नाम से टेंडर में भाग लिया था, जिसमें सभी दस्तावेज बालाजी इंटरप्राइजेज के ही थे। आपको यह भी जानकर हैरानी होगी कि बालाजी को चित्रकूट मंडल और विजया फाउंडेशन को झांसी मंडल का कार्य सौंपा गया है, जबकि विजया और अंशिका के मालिक पति-पत्नी हैं।