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उत्तर प्रदेश में जाति व्यवस्था के खिलाफ ऐतिहासिक निर्णय

उत्तर प्रदेश सरकार ने जाति व्यवस्था के खिलाफ एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें FIR और सरकारी दस्तावेजों में जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। यह आदेश जाति आधारित रैलियों पर भी रोक लगाता है। इस फैसले का राजनीतिक प्रभाव भी पड़ेगा, खासकर जाति आधारित दलों पर। जानें इस ऐतिहासिक निर्णय के पीछे का कारण और इसके संभावित परिणाम।
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उत्तर प्रदेश में जाति व्यवस्था के खिलाफ ऐतिहासिक निर्णय

यूपी में जाति पर सख्त नियम लागू

उत्तर प्रदेश में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है, जो जाति व्यवस्था के खिलाफ एक बड़ा कदम माना जा रहा है। अब से, राज्य में किसी भी व्यक्ति की जाति को पुलिस FIR और अरेस्ट मेमो में नहीं लिखा जाएगा। इसके साथ ही, जाति पर आधारित रैलियों का आयोजन भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। यह निर्णय यूपी सरकार का अब तक का सबसे बड़ा कदम है।


राजनीति पर प्रभाव

इस आदेश का प्रभाव प्रदेश की राजनीतिक स्थिति पर भी पड़ेगा। मुख्य सचिव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए यह आदेश जारी किया है। जाति आधारित राजनीतिक दल जैसे सपा और बसपा को इस नियम से नुकसान हो सकता है। सरकारी और कानूनी दस्तावेजों से जाति से संबंधित कॉलम को हटाने का निर्णय लिया गया है, जिससे सभी को समान रूप से देखा जा सके।


सोशल मीडिया पर भी लागू

सचिव के आदेश के अनुसार, जाति आधारित रैलियों और कार्यक्रमों पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। इसके अलावा, सोशल मीडिया और इंटरनेट पर जाति के बारे में चर्चा करने या जाति का महिमामंडन करने पर भी सख्त कार्रवाई की जाएगी। नफरत फैलाने वालों के खिलाफ आईटी एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी।


कुछ मामलों में छूट

हालांकि, आदेश में सरकारी कागजों पर जाति लिखने की मनाही की गई है, लेकिन कुछ विशेष मामलों में, जैसे जटिल कानूनों के तहत, कर्मचारियों को जाति लिखने की छूट दी जाएगी।


हाईकोर्ट का आदेश

यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 19 सितंबर को दिए गए एक फैसले के बाद आया, जिसमें एक शराब तस्करी मामले में याचिकाकर्ता ने अपनी जाति को FIR और जब्ती मेमो में लिखने पर आपत्ति जताई थी। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने इसे संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ माना और यूपी सरकार को तत्काल प्रभाव से दस्तावेजों में बदलाव करने का आदेश दिया।