उत्तर प्रदेश में जातिवाद पर रोक: हाई कोर्ट का आदेश और सरकार की प्रतिक्रिया

जातिवाद के खिलाफ हाई कोर्ट का आदेश
इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक निर्णय के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने जातिवाद को समाप्त करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की घोषणा की है। इस आदेश से सबसे अधिक चिंता सत्तारूढ़ भाजपा की सहयोगी पार्टियों में देखी जा रही है, जो विशेष जातियों की राजनीति में सक्रिय हैं। भाजपा स्वयं भी सामाजिक समीकरणों के आधार पर राजनीति करती है, और यह बात सबसे पहले तब सामने आई थी जब कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था। मुख्य विपक्षी पार्टी, समाजवादी पार्टी, जातीय राजनीति पर आधारित है। पहले यह मुस्लिम और यादव समुदायों की राजनीति करती थी, लेकिन अब इसके नेता अखिलेश यादव ने इसे पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों की पार्टी बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
सरकार की नई नीतियाँ
जस्टिस विनोद दिवाकर ने उत्तर प्रदेश सरकार को जातिसूचक शब्दों के सार्वजनिक उपयोग पर रोक लगाने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा है कि गाड़ियों पर जातिसूचक शब्द, प्रतीक और नारे नहीं लिखे जाने चाहिए, और सोशल मीडिया पर जातियों का महिमामंडन करने वाले कंटेंट को भी प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जातिगत भेदभाव को कम करने के लिए कानून बनाने के साथ-साथ राज्य सरकार को निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पहले हिस्से के निर्देश को गंभीरता से लिया है और कई नियमों की एक सूची जारी की है।
जातिवाद पर नियंत्रण के उपाय
उत्तर प्रदेश सरकार अब सोशल मीडिया पर जातीय कंटेंट पर नजर रखेगी। यदि किसी गाड़ी पर जाति का उल्लेख या जातिसूचक प्रतीक पाया गया, तो वह गाड़ी जब्त कर ली जाएगी। इसके अलावा, पुलिस रिकॉर्ड में अपराधियों की जाति का उल्लेख समाप्त करने का निर्णय लिया गया है, जो एक सकारात्मक कदम है। इससे जाति के आधार पर अपराधियों के समर्थन की प्रथा को समाप्त किया जा सकेगा। इसके साथ ही, जाति आधारित रैलियों और राजनीतिक आयोजनों पर भी रोक लगा दी गई है।
राजनीतिक दलों की चिंता
भाजपा की सहयोगी पार्टियाँ, जैसे अपना दल, निषाद पार्टी, और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जातीय राजनीति में सक्रिय हैं। अब इन पार्टियों को चिंता है कि वे अपनी राजनीतिक गतिविधियों को कैसे जारी रख पाएंगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम पर क्षत्रीय सम्मेलनों का आयोजन होता है, और ब्राह्मणों के संगठन भी सक्रिय हैं। ऐसे में जातीय आयोजनों पर रोक लगाने के उपाय क्या होंगे, यह एक बड़ा सवाल है।