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उत्तर प्रदेश में ठाकुर विधायकों की बैठक: जातिगत समीकरणों का नया मोड़

उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल ही में ठाकुर विधायकों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसने जातिगत समीकरणों को फिर से चर्चा में ला दिया है। लखनऊ के होटल क्लार्क्स अवध में आयोजित इस बैठक में लगभग 40 विधायकों ने भाग लिया, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता शामिल थे। आयोजकों का दावा है कि यह एक सांस्कृतिक मिलन था, लेकिन इसके समय और पैमाने ने राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। क्या यह भाजपा के भीतर असंतोष का संकेत है? जानें इस बैठक के पीछे की गहराई और इसके संभावित राजनीतिक प्रभाव।
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उत्तर प्रदेश में ठाकुर विधायकों की बैठक: जातिगत समीकरणों का नया मोड़

राजनीतिक हलचल में जातिगत समीकरणों का प्रभाव

उत्तर प्रदेश की राजनीतिक परिदृश्य में जातिगत समीकरणों ने एक बार फिर से जोर पकड़ लिया है। हाल ही में लखनऊ के होटल क्लार्क्स अवध में 'कुटुंब परिवार' के बैनर तले लगभग 40 ठाकुर विधायकों का एकत्र होना, राज्य की राजनीति में नई हलचल का संकेत है। आयोजकों का कहना है कि यह एक सांस्कृतिक-सामाजिक मिलन था, लेकिन इसकी समय, पैमाना और भागीदारी ने राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि ऐसा आयोजन विधानसभा के मानसून सत्र के बीच में क्यों किया गया।


यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में ठाकुर विधायक और विधान परिषद सदस्य एकजुटता दिखाने के लिए एकत्र हुए हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा में लगभग 49 ठाकुर विधायक हैं, जिनमें से करीब 40 इस बैठक में शामिल हुए। यह आयोजन पार्टी लाइनों से परे था, जिसमें समाजवादी पार्टी (SP) के निष्कासित विधायक राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह, बसपा (BSP) के उमा शंकर सिंह, भाजपा (BJP) के अभिजीत सिंह संगा और एमएलसी शैलेंद्र प्रताप सिंह जैसे प्रमुख नेता शामिल थे।


राजनीतिक विश्लेषक सुरेश बहादुर सिंह ने इस बैठक को केवल एक साधारण आयोजन मानने से इनकार किया है। उनका कहना है कि यह बैठक 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद ठाकुर नेताओं के बीच एक अदृश्य चिंता को दर्शाती है, जब समुदाय के कई सदस्यों को टिकट वितरण में नजरअंदाज किया गया। उनके अनुसार, पश्चिमी यूपी में जनरल वी. के. सिंह को फिर से टिकट न मिलने के बाद शुरू हुई निराशा अब एक संगठित अभिव्यक्ति बन चुकी है।


हालांकि आयोजकों ने इसे अराजनीतिक बताया है, लेकिन इसके राजनीतिक मायने स्पष्ट हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, दोनों ही ठाकुर समुदाय से आते हैं। जब राज्य और राष्ट्रीय राजनीति के दो प्रमुख चेहरे पहले से ही इस समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तब लगभग चार दर्जन ठाकुर विधायकों का अलग से बैठक करना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह भाजपा के भीतर अधिक राजनीतिक प्रभाव हासिल करने की कोशिश है, या यह असंतोष का संकेत है कि समुदाय का प्रभाव व्यापक राजनीतिक प्रतिनिधित्व में नहीं बदल रहा है?