उत्तर प्रदेश में भगवान परशुराम मंदिर की दुर्दशा: राजनीति की सच्चाई
जातीय राजनीति का नया मोड़
उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति में जातीय मुद्दे एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गए हैं। इटावा में हाल ही में हुए कथावाचक कांड के बाद, राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान, अखिलेश यादव ने ब्राह्मण वोट बैंक को साधने के लिए महुआ खेड़ा मजरा गांव में भगवान परशुराम के मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लिया था। लेकिन अब उस मंदिर की स्थिति चिंताजनक है।
मंदिर की खस्ता हालत
लखनऊ में स्थित भगवान परशुराम का मंदिर अब बदहाल हो चुका है। मूर्ति की माला कई दिनों से नहीं बदली गई है, और मंदिर की छत से पानी टपक रहा है। जगह-जगह काई जमी हुई है, और मंदिर का बाहरी दृश्य ऐसा है जैसे वह किसी जंगल में खो गया हो।
सपा के पूर्व विधायक का योगदान
यह मंदिर सपा के पूर्व विधायक संतोष पांडे द्वारा बनवाया गया था, और अखिलेश यादव ने इसकी प्राण प्रतिष्ठा में भाग लिया था। अब इस मंदिर की स्थिति देखकर यह सवाल उठता है कि क्या भगवान परशुराम केवल चुनावों के समय ही याद किए जाते हैं? मंदिर में स्थापित 108 फीट ऊंचा फरसा कुछ ही दिनों में गिर गया था, और अब वह भी जर्जर स्थिति में है।
मंदिर की देखभाल का अभाव
जब न्यूज मीडिया की टीम मंदिर पहुंची, तो पाया कि भगवान परशुराम की मूर्ति पर धूल की परत जमी हुई है। मंदिर के स्तंभ का चबूतरा टूटा हुआ है, और सीढ़ियाँ भी क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। छत से पानी टपक रहा है, और मंदिर का स्तंभ भी जर्जर हो चुका है।
सौर ऊर्जा की लाइटों की स्थिति
मंदिर में सौर ऊर्जा की लाइटें लगाई गई थीं, लेकिन अब उनका पैनल गायब है। लाइटिंग के स्विच उखड़ चुके हैं, और बैटरी बाहर लटकी हुई है।
पुजारी और रखरखाव का अभाव
इस मंदिर में न तो कोई पुजारी है और न ही कोई देखभाल करने वाला। मंदिर के पास रहने वाली महिलाओं ने बताया कि पहले यहां एक व्यक्ति था जो सुबह-शाम पूजा करता था, लेकिन अब वह भी नहीं आता।