उत्तर भारत में बारिश का कहर: बेतरतीब विकास का खामियाजा

प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का खतरनाक परिणाम
प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम अब स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं। नदियाँ खतरे के स्तर से ऊपर बह रही हैं, पहाड़ों में दरारें आ रही हैं, और बादल फटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं। इस स्थिति के पीछे मुख्य कारण बेतरतीब विकास है, जबकि सरकारें और लोग इस संकट के प्रति अनजान बने हुए हैं।
केदारनाथ त्रासदी के बाद सबसे अधिक बारिश
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, इस वर्ष उत्तर भारत में सामान्य से 21% अधिक बारिश हुई है, जो 2013 के बाद का सबसे अधिक आंकड़ा है। यह वही वर्ष था जब केदारनाथ में विनाशकारी बाढ़ आई थी। 2021 में IMD द्वारा आंकड़े एकत्र करने के बाद से यह सबसे अधिक बारिश का रिकॉर्ड है।
अगस्त में बारिश का रिकॉर्ड
25 अगस्त तक उत्तर भारत में 21 बार भारी बारिश हुई, जो पिछले वर्ष के 14 बार के मुकाबले 50% अधिक है। इस बार अगस्त में सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई है, और महीने के अंत तक और बारिश की संभावना है, जिससे यह क्षेत्र के लिए एक विनाशकारी महीना साबित हो सकता है।
अत्यधिक बारिश की परिभाषा
IMD के अनुसार, अत्यधिक भारी बारिश वह होती है जब 24 घंटे में 204.55 मिमी से अधिक वर्षा होती है। इस मानसून में, उत्तर भारत एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ सीजन के तीनों महीनों (जून, जुलाई, अगस्त) में भारी बारिश हुई है, जो 2013 के बाद से पहली बार है।
वर्षा गतिविधियों का कारण
पिछले दो महीनों में उत्तर-पश्चिम भारत में पश्चिमी विक्षोभ और बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसून धाराओं के बीच संपर्क के कारण उच्च वर्षा गतिविधि देखी गई है। IMD के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा के अनुसार, जब ये धाराएँ मिलती हैं, तो अत्यधिक वर्षा होती है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
इस मानसून सीजन में उत्तर भारत में पिछले तीन दिन सबसे अधिक वर्षा वाले रहे हैं। अकेले 25 अगस्त को 21.6 मिमी बारिश हुई, जो उस दिन की सामान्य 5.6 मिमी से चार गुना अधिक है। जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक बारिश हो रही है, जबकि अन्य में सूखे की स्थिति है। यदि मानवता ने सुधार नहीं किया, तो भविष्य में गंभीर तबाही का सामना करना पड़ सकता है।