उत्तरकाशी में बादल फटने से भारी तबाही, राहत कार्य जारी

उत्तरकाशी में प्राकृतिक आपदा
उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना: मंगलवार को उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने और भूस्खलन ने व्यापक तबाही मचाई। इस प्राकृतिक आपदा ने गांव को गंभीर रूप से प्रभावित किया, जिससे जान-माल के नुकसान की आशंका जताई जा रही है। स्थानीय प्रशासन और राहत टीमें तुरंत घटनास्थल पर पहुंचकर बचाव कार्य में जुट गई हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, जब यह आपदा आई, तब धराली गांव में लगभग 300 लोग मौजूद थे। हालांकि, सौभाग्य से कई ग्रामीण पास के मेले में गए हुए थे, जिससे हताहतों की संख्या में कमी आने की संभावना है। फिर भी, मृतकों की सही संख्या अभी तक ज्ञात नहीं हो सकी है। राहत कार्य में सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें शामिल हैं। धराली गांव उत्तरकाशी-गंगोत्री हाईवे पर हर्षिल से केवल पांच किलोमीटर दूर स्थित है।
उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से सब कुछ बह गया। कई लोगों की मौत की खबर pic.twitter.com/qJZ9kT6gvk
— Hemraj Singh Chauhan (@JournoHemraj) August 5, 2025
श्रीखंड पहाड़ी और सप्तताल झील:
धराली गांव के ऊपर स्थित पहाड़ी पर सप्तताल झील है, जिसके कैचमेंट क्षेत्र में श्रीखंड पहाड़ी मौजूद है। लंबे समय से इस पहाड़ी के टूटने की घटनाएं सामने आ रही थीं। मंगलवार को 'खीर गंगा' नदी में अचानक बादल फटने से भारी मात्रा में मलबा और पानी धराली गांव की ओर बह गया, जिसने गांव को तबाह कर दिया। स्थानीय लोगों का कहना है, "जान-माल की भारी हानि हुई है। इससे पहले 18वीं सदी में खीर गंगा नदी के कारण ऐसी त्रासदी देखी गई थी, जब प्रसिद्ध 'कल्पेश्वर महादेव मंदिर' का बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था।"
सुक्की के समीप बादल फटा, भागीरथी नदी का जलस्तर उफान पर, निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा pic.twitter.com/Lku6MfJWOg
— Hemraj Singh Chauhan (@JournoHemraj) August 5, 2025
पिछली आपदाओं की याद दिलाता है यह मंजर:
विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना केदारनाथ में 2013-14 में आई भयंकर बाढ़ और बादल फटने के समान है। खीर गंगा नदी के पास पहाड़ी के दरकने की घटनाएं पहले भी देखी गई थीं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकार ने समय पर नदी पर अलार्म सिस्टम स्थापित किया होता, तो शायद इस आपदा की गंभीरता को कम किया जा सकता था।
बचाव कार्य और भविष्य की चुनौतियाँ:
राहत और बचाव कार्य तेजी से चल रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों में भय और अनिश्चितता का माहौल है। यह घटना उत्तराखंड के लिए एक चेतावनी है कि प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए पहले से बेहतर तैयारियां और निगरानी तंत्र की आवश्यकता है।