Newzfatafatlogo

उत्तराखंड के पहाड़ों में शव को ले जाने की कठिनाई: सड़क की कमी का दर्द

उत्तराखंड के चंपावत जिले में खटगिरी गांव के संतोष सिंह की मृत्यु के बाद उनके परिवार को शव को 12 किलोमीटर पैदल ले जाने की कठिनाई का सामना करना पड़ा। सड़क की कमी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई, जो पहाड़ों में रहने वाले लोगों के जीवन की वास्तविकता को उजागर करती है। इस घटना ने ग्रामीणों की सड़क निर्माण की प्रतीक्षा और उनके संघर्ष को फिर से सामने लाया है। जानें इस दर्दनाक स्थिति के बारे में और कैसे यह समस्या कई अन्य ग्रामीणों को भी प्रभावित कर रही है।
 | 
उत्तराखंड के पहाड़ों में शव को ले जाने की कठिनाई: सड़क की कमी का दर्द

पहाड़ों में जीवन की कठिनाइयाँ

किसे नहीं पसंद पहाड़ों पर घूमना? लेकिन पहाड़ों में रहने वाले लोगों के जीवन, उनके दुख-दर्द और जरूरतों पर कोई चर्चा नहीं करता। यहां तक कि स्थानीय सरकार भी इस पर ध्यान नहीं देती। पहाड़ों में जीवन संघर्ष से भरा होता है, और मृत्यु के बाद भी उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलता। इस तस्वीर की गुणवत्ता भले ही थोड़ी खराब हो, लेकिन यह पहाड़ों के सिस्टम की सच्चाई को उजागर करने के लिए पर्याप्त है।


यह दृश्य उत्तराखंड के चंपावत जिले के खटगिरी गांव का है। संतोष सिंह, जो 65 वर्ष के थे, ने एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके परिवार को शव को तिरपाल में लपेटकर एक डंडे से बांधकर 12 किलोमीटर दूर गांव तक ले जाना पड़ा। यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि गांव तक कोई सड़क नहीं है।


32 किमी गाड़ी से यात्रा, फिर पैदल चलने की मजबूरी

संतोष का गांव चंपावत जिले के तल्लादेश में स्थित है, जो नेपाल की सीमा के निकट है। संतोष सिंह लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे और इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनके परिवार ने चंपावत से मंच स्थान तक 32 किमी गाड़ी से यात्रा की, लेकिन उसके बाद शव को पैदल ही ले जाना पड़ा। यह यात्रा भी आसान नहीं थी, क्योंकि गांव का रास्ता पगडंडी और फिसलन भरा था।


सड़क निर्माण का इंतजार

संतोष सिंह जैसे कई ग्रामीण सड़क निर्माण की प्रतीक्षा में अपना जीवन बिता चुके हैं। कई लोगों की मौत हो गई, लेकिन सड़क का निर्माण अब तक नहीं हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि कई बार गांव में सड़क बनाने के लिए सर्वेक्षण किया गया, लेकिन काम शुरू नहीं हो सका। उनके लिए सड़क अब भी एक सपना है।


यह घटना पहली नहीं

संतोष सिंह पहले व्यक्ति नहीं हैं जो इस तरह की अव्यवस्था का शिकार हुए हैं। हाल ही में बकोड़ा गांव के एक मरीज को डोली से मंच तक लाया गया था, जहां से सड़क शुरू होती है। ग्राम प्रधान की मां को चोट लगने पर उन्हें टनकपुर ले जाना था, और उस समय भी यही समस्या उत्पन्न हुई।