उत्तराखंड में आपदाओं की बढ़ती संवेदनशीलता पर आईआईटी रुड़की की नई रिपोर्ट
आपदाओं के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता
हाल ही में, हिमालयी क्षेत्रों में लगातार आ रही आपदाओं के संदर्भ में विशेषज्ञ संस्थाओं ने गंभीरता दिखाई है। आईआईटी रुड़की ने उत्तराखंड के सभी जिलों का गहन अध्ययन कर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जो राज्य की भूकंप और भूस्खलन की संवेदनशीलता को उजागर करती है। इस रिपोर्ट में कई जिलों को आपदा के लिए अत्यधिक संवेदनशील बताया गया है।रिपोर्ट के अनुसार, रुद्रप्रयाग जिले को सबसे अधिक खतरे में रखा गया है, इसके बाद पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जैसे जिले आते हैं। इन क्षेत्रों की भौगोलिक संरचना, तीखे पहाड़ी ढलान और भारी वर्षा इनकी स्थिति को और जटिल बनाते हैं, जिससे प्राकृतिक आपदाएं अधिक तीव्र और घातक हो सकती हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि राज्य में भूस्खलन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। विशेषकर बारिश के मौसम में मिट्टी की नमी और पहाड़ियों की अस्थिरता स्थिति को और बिगाड़ देती है। भूकंप के दौरान ये हालात और भी गंभीर हो सकते हैं। पीक ग्राउंड एक्सेलेरेशन (PGA) का उपयोग करते हुए रिपोर्ट में यह विश्लेषण किया गया है कि भूकंप से प्रेरित भूस्खलन सामान्य से कई गुना अधिक खतरनाक हो सकते हैं।
रुद्रप्रयाग जिले की स्थिति को अलकनंदा और मंदाकिनी नदी घाटियों के बीच की भौगोलिक बनावट के कारण सबसे संवेदनशील माना गया है। यहां न केवल तीखे ढलान हैं, बल्कि भूकंपीय इतिहास भी गंभीर है। यह क्षेत्र हर साल संभावित आपदाओं के खतरे में रहता है।
पिछले वर्षों की घटनाएं भी चेतावनी देती हैं। 2023 में ही राज्य में 200 से अधिक भूस्खलन की घटनाएं हुईं, जिससे कई सड़कों को बंद करना पड़ा और कई लोगों की जान गई। 2013 की केदारनाथ त्रासदी आज भी लोगों के मन में ताजा है। इसी वर्ष उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना ने फिर से यह दिखा दिया कि यह क्षेत्र कितना असुरक्षित है।
आईआईटी रुड़की की रिपोर्ट के बाद, राज्य सरकार ने सभी संबंधित विभागों को सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि प्रभावित लोगों को हर संभव सहायता प्रदान की जाएगी। आपदा राहत दलों को 24 घंटे तैयार रहने का आदेश दिया गया है ताकि किसी भी आपात स्थिति में त्वरित कार्रवाई की जा सके।