उत्तराखंड में बढ़ती ग्लेशियर झीलों का खतरा, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

उत्तराखंड में ग्लेशियर झीलों का बढ़ता खतरा
देहरादून: उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों से एक गंभीर चिंता की खबर आई है, जिसने 2013 की केदारनाथ आपदा की यादें ताजा कर दी हैं। पिथौरागढ़ में भारत-चीन सीमा के निकट दारमा घाटी में एक विशाल ग्लेशियर झील का आकार तेजी से बढ़ रहा है, जिससे वैज्ञानिकों ने संभावित तबाही की चेतावनी दी है।
इस झील को 'अर्णव झील' कहा जा रहा है, जो लगभग 700 मीटर लंबी और 600 मीटर चौड़ी है। हाल के अध्ययनों में इसका आकार 30 प्रतिशत तक बढ़ने की जानकारी मिली है। यह झील हिमनद के असंगठित मलबे पर स्थित है, जो एक कमजोर प्राकृतिक बांध का कार्य करती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि बर्फ पिघलने या भारी बारिश के कारण झील में जल स्तर अचानक बढ़ता है, तो यह कमजोर बांध टूट सकता है, जिससे निचले क्षेत्रों में केदारनाथ जैसी जल प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
यह खतरा केवल अर्णव झील तक सीमित नहीं है। गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट के नेतृत्व में एक अध्ययन में यह सामने आया है कि गंगोत्री में स्थित केदार ताल और चमोली की वसुधारा झील का आकार भी लगातार बढ़ रहा है। 2014 और 2023 के बीच लिए गए उपग्रह चित्रों के विश्लेषण से यह चिंताजनक स्थिति उजागर हुई है।
डॉ. बिष्ट ने कहा, "देशी और विदेशी सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण में इन झीलों के आकार में आए बड़े बदलाव स्पष्ट हैं। ये झीलें मोराइन डैम पर बनी हैं, जो अत्यंत अस्थिर होती हैं। इनका टूटना नीचे की घाटियों के लिए विनाशकारी हो सकता है।"
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान ने भी चमोली में वसुधारा झील और केदारताल के आकार में वृद्धि की पुष्टि की है। हाल ही में, संस्थान ने राज्य में 25 अन्य खतरनाक ग्लेशियर झीलों की पहचान की है।
डॉ. बिष्ट ने राज्य सरकार और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों को चेतावनी दी है कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, "इन झीलों का वैज्ञानिक आकलन, निरंतर निगरानी और सुरक्षा के उपाय करना अत्यंत आवश्यक है। यदि इसे नजरअंदाज किया गया, तो भविष्य में हमें 2013 जैसी त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है।"