उत्तराखंड में बादल फटने की घटना: जानें इसके कारण और प्रभाव

उत्तराखंड में बादल फटने की तबाही
गंगोत्री घाटी के धराली क्षेत्र में हाल ही में बादल फटने की एक गंभीर घटना ने भारी तबाही मचाई है। खीरगाड़ नाले में आई तेज़ फ्लैश फ्लड के चलते धराली बाजार में कई इमारतें बह गईं और कई लोग लापता हो गए हैं। राहत कार्य में सेना, SDRF और पुलिस की टीमें जुटी हुई हैं, लेकिन स्थिति अभी भी बहुत गंभीर बनी हुई है.
बादल फटने की प्रक्रिया
बादल फटना एक ऐसी घटना है जिसमें बहुत कम समय में अत्यधिक बारिश होती है। तकनीकी रूप से, यदि किसी क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिलीमीटर या उससे अधिक बारिश होती है, तो इसे 'बादल फटना' कहा जाता है। यह घटना आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में होती है, जहां बादल एक स्थान पर रुककर लगातार भारी वर्षा करते हैं.
बादल फटने का कारण
जब गर्म और नम हवा तेजी से ऊपर उठती है और ऊंचाई पर जाकर ठंडी होकर संघनित होती है, तब बादल बनते हैं। कभी-कभी ये बादल एक ही स्थान पर बहुत अधिक मात्रा में पानी जमा कर लेते हैं। जब यह जलवाष्प अचानक और एक साथ बरस जाती है, तो इसे 'बादल फटना' कहा जाता है.
पहाड़ी क्षेत्रों में खतरा
पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं अधिक होती हैं क्योंकि यहां की ऊंचाई और जलवायु परिवर्तन इसके लिए अनुकूल होते हैं। तेज ढलान के कारण बारिश का पानी तेजी से नीचे बहता है, जिससे फ्लैश फ्लड जैसी स्थिति उत्पन्न होती है.
बादल फटने से होने वाला नुकसान
बादल फटने से कुछ ही मिनटों में नदियां उफान पर आ जाती हैं, सड़कें बह जाती हैं, पुल टूट जाते हैं और घर-होटल जमींदोज हो जाते हैं। इसके साथ ही जान-माल का भारी नुकसान भी होता है। गंगोत्री की हालिया घटना इसका एक बड़ा उदाहरण है.
बचाव के उपाय
सरकार और वैज्ञानिक संस्थाएं अब आधुनिक मौसम तकनीक का उपयोग करके ऐसे हादसों की पूर्व चेतावनी देने का प्रयास कर रही हैं। इसके साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन प्रणाली को भी मजबूत किया जा रहा है। लेकिन लोगों को भी सतर्क रहना चाहिए और प्रशासन के दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए.