उन्नाव रेप केस में CBI ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, कुलदीप सेंगर की जमानत पर उठे सवाल
सुप्रीम कोर्ट में CBI की याचिका
नई दिल्ली : उन्नाव रेप मामले से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें दोषी कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत दी गई थी। यह मामला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज और न्याय व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्न उठाता है।
CBI की विशेष अनुमति याचिका
CBI की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
CBI ने 16 दिसंबर को सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition – SLP) दायर की है। इस याचिका के माध्यम से जांच एजेंसी ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस निर्णय पर आपत्ति जताई है, जिसमें सेंगर की सजा पर अस्थायी रोक लगाई गई और उसे जमानत दी गई। CBI का कहना है कि यह आदेश गंभीर अपराध से संबंधित मामलों में न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय
दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश
दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने सेंगर की सजा को निलंबित करते हुए उसे जमानत दी थी। अदालत ने यह राहत कुछ शर्तों के साथ प्रदान की थी, जिसमें 15 लाख रुपये का जमानत बांड भरना शामिल था। इस फैसले के बाद यह मामला फिर से चर्चा में आ गया है, क्योंकि यह एक संवेदनशील और चर्चित केस है।
सेंगर की सजा और पूर्व निर्णय
सजा और पूर्व फैसला
कुलदीप सिंह सेंगर को मार्च 2020 में एक अलग लेकिन संबंधित मामले में सजा सुनाई गई थी, जो पीड़िता के पिता की हिरासत में हुई मौत से जुड़ा था। अदालत ने उसे इस मामले में 10 साल की कठोर सजा और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। सेंगर को पहले ही उन्नाव रेप कांड में दोषी ठहराया जा चुका है, जिसने देशभर में आक्रोश पैदा किया था।
CBI की आपत्ति और तर्क
CBI की आपत्ति और तर्क
CBI का मानना है कि गंभीर अपराध में दोषी व्यक्ति को जमानत देना पीड़ित और समाज के लिए गलत संदेश है। एजेंसी का तर्क है कि ऐसे मामलों में सजा का निलंबन न्याय प्रक्रिया की गंभीरता को कमजोर करता है। इसी आधार पर CBI ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की है, ताकि उच्च न्यायालय के आदेश की समीक्षा की जा सके।
आगे की कानूनी प्रक्रिया
आगे की कानूनी प्रक्रिया
अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख महत्वपूर्ण माना जा रहा है। शीर्ष अदालत यह तय करेगी कि दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय बरकरार रहेगा या CBI की दलीलों को स्वीकार करते हुए आदेश में बदलाव किया जाएगा। इस फैसले का प्रभाव न केवल इस मामले पर पड़ेगा, बल्कि भविष्य में ऐसे संवेदनशील मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण पर भी असर डाल सकता है।
उन्नाव रेप कांड पहले ही देश के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बन चुका है और CBI की यह याचिका एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि गंभीर अपराधों में दोषियों को राहत देने की सीमा क्या होनी चाहिए।
