एयर इंडिया हादसे का एकमात्र जीवित बचे व्यक्ति: विश्वास कुमार की दर्दनाक कहानी
                           
                        नई दिल्ली में एक भयानक हादसे की दास्तान
नई दिल्ली: भगवान ने मुझे जीवन तो दिया, लेकिन मेरी सारी खुशियों को छीन लिया... ये शब्द हैं विश्वास कुमार रमेश के, जो 12 जून 2015 को अहमदाबाद में एयर इंडिया फ्लाइट AI-171 के भयानक हादसे में एकमात्र जीवित बचे व्यक्ति हैं। इस दुर्घटना ने उनके परिवार और जीवन को गहरा आघात पहुँचाया। उनके भाई अजय कुमार रमेश इस हादसे में जान गंवा बैठे, और अब विश्वास की दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी है।
जिंदगी बन गई सजा
विश्वास को आज भी वह दिन याद है, जब मेटल की चीख और आग की लपटों ने उनके चारों ओर मौत का मंजर बिखेर दिया। उन्हें लगा कि उनका अंत आ गया है, लेकिन किस्मत ने उन्हें बचा लिया। हालांकि, जीवित रहना उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं, बल्कि एक सजा बन गया है।
12 जून की त्रासदी
12 जून की दोपहर, एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर लंदन के लिए उड़ान भरने वाला था। टेकऑफ के कुछ ही क्षण बाद, विमान बुरी तरह से दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में 240 यात्री और क्रू मेंबर की मौके पर ही मृत्यु हो गई, साथ ही एयरपोर्ट के पास 30 अन्य लोग भी इस त्रासदी का शिकार हुए।
आखिरी क्षणों की यादें
विश्वास फ्लाइट की 11A सीट पर बैठे थे। वह बताते हैं कि उड़ान भरने के कुछ ही क्षण बाद लाइटें टिमटिमाने लगीं और विमान की पावर फेल हो गई। कुछ ही पलों में विमान जमीन से टकरा गया। उन्हें लगा कि वह मर चुके हैं, लेकिन जब उनकी आंखें खुलीं, तो उन्हें एहसास हुआ कि वह जीवित हैं। किसी तरह उन्होंने अपनी सीट बेल्ट खोली और मलबे में बने एक छेद से बाहर निकलने की कोशिश की। बाहर निकलते ही उन्होंने चारों ओर आग, लाशें और तबाही का दृश्य देखा, जो आज भी उनके मन में ताजा है।
सब कुछ खोने का दर्द
इस हादसे में विश्वास ने अपने भाई अजय कुमार को खो दिया, जो उनके सबसे बड़े सहारे थे। उन्होंने कहा कि यह किसी चमत्कार से कम नहीं कि वह जीवित हैं, लेकिन उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया। उनका भाई न केवल उनका साथी था, बल्कि उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भी था। हादसे के बाद विश्वास अपने लीसेस्टर स्थित घर लौट आए हैं, लेकिन वह अब भी उस दिन की यादों से उबर नहीं पाए हैं।
अकेलापन और मानसिक संघर्ष
विश्वास बताते हैं कि अब वह ज्यादातर अपने कमरे में अकेले रहते हैं। न पत्नी से बात करते हैं, न बेटे से। उनका कहना है, अब मुझे बस अकेलापन ही अच्छा लगता है। उनकी मां अब भी सदमे में हैं और चार महीनों से हर दिन घर के बाहर चुपचाप बैठी रहती हैं। परिवार का हर सदस्य मानसिक और भावनात्मक रूप से टूट चुका है। विश्वास कहते हैं, रातें नींद में नहीं, बस सोचते हुए गुजरती हैं।
PTSD से जूझते विश्वास
डॉक्टरों के अनुसार, विश्वास पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) से जूझ रहे हैं। वह शारीरिक दर्द और मानसिक तनाव दोनों से संघर्ष कर रहे हैं। चलने में उन्हें कठिनाई होती है। उनकी पत्नी उन्हें सहारा देती हैं। उनके कजिन बताते हैं कि वह अक्सर आधी रात को चिल्लाकर उठ जाते हैं और उन्हें मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ा।
