ओडिशा में सोने के विशाल भंडार की खोज, अर्थव्यवस्था को मिलेगा नया संजीवनी

ओडिशा में सोने की नई पहचान
भुवनेश्वर: ओडिशा, जो खनिज संसाधनों के लिए जाना जाता है, अब देश के स्वर्ण मानचित्र पर एक नई पहचान बनाने की दिशा में बढ़ रहा है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने राज्य के छह जिलों में लगभग 10 से 20 टन सोने के विशाल भंडार की पुष्टि की है। इस महत्वपूर्ण खोज के बाद, राज्य सरकार ने खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने की योजना बनाई है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था और स्थानीय रोजगार को बड़ा बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
जीएसआई द्वारा किए गए विस्तृत सर्वेक्षण और परीक्षण के बाद देवगढ़ के अड़स-रामपल्ली, सुंदरगढ़, नवरंगपुर, केंदुझर, अनुगुल और कोरापुट जिलों में सोने की मौजूदगी का पता चला है। राज्य के खनन मंत्री विभूति भूषण जेना ने भी इन जिलों में सोने की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि इन क्षेत्रों में सोने की सांद्रता खनन के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य है।
इस बड़ी खोज के बाद, राज्य सरकार ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी है। देवगढ़ में स्थित खदान की नीलामी के लिए ओडिशा माइनिंग कॉर्पोरेशन (ओएमसी) और जीएसआई ने मिलकर प्रारंभिक प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके अलावा, मयूरभंज, मलकानगिरी, संबलपुर और बौद्ध जैसे अन्य जिलों में भी सोने की खोज का कार्य जारी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि खनन सफल होता है, तो यह ओडिशा के लिए एक महत्वपूर्ण परिवर्तन साबित होगा। इससे न केवल राज्य के राजस्व में वृद्धि होगी, बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अनगिनत अवसर भी उत्पन्न होंगे। साथ ही, खनन से जुड़े सहायक उद्योगों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि खनन कार्य पर्यावरणीय मानकों के अनुसार किया जाएगा और प्रभावित स्थानीय लोगों के पुनर्वास और विकास का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
यह खोज राष्ट्रीय स्तर पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत अपनी सोने की जरूरत का एक बड़ा हिस्सा आयात से पूरा करता है। हर साल लगभग 700 से 800 टन सोने का आयात किया जाता है, जबकि घरेलू उत्पादन केवल 1.6 टन है। ओडिशा की इन खदानों से उत्पादन शुरू होने पर सोने के आयात पर देश की निर्भरता काफी हद तक कम हो सकती है, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।