कंबोडिया का इतिहास: संघर्ष, आज़ादी और थाईलैंड के साथ तनाव

कंबोडिया: एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि
दक्षिण-पूर्व एशिया का एक महत्वपूर्ण देश कंबोडिया हाल ही में फिर से चर्चा में है। थाईलैंड के साथ उसकी सीमा पर तनाव बढ़ गया है, जहां दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं और टकराव की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रेह विहार मंदिर के विवाद ने कंबोडिया और थाईलैंड के बीच युद्ध की स्थिति पैदा कर दी है। इस संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि कंबोडिया का इतिहास क्या है, इस देश ने किन विदेशी शक्तियों के अधीन रहकर संघर्ष किया, और वर्तमान में इसकी स्थिति क्या है?
कंबोडिया का समृद्ध इतिहास
कंबोडिया अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसके पीछे एक लंबा और संघर्षपूर्ण इतिहास भी है। यह देश कभी खमेर साम्राज्य की राजधानी रहा है और कई पड़ोसी देशों के प्रभुत्व का गवाह बना है। आइए जानते हैं कि कंबोडिया किन राजवंशों और विदेशी शक्तियों के अधीन रहा, इसे आज़ादी कैसे मिली और भारत के साथ इसके संबंध किस प्रकार के हैं।
कंबोडिया पर शासन करने वाले साम्राज्य
कंबोडिया में पहली शताब्दी में फुनान साम्राज्य की स्थापना हुई, जिसने लगभग पांच शताब्दियों तक शासन किया। इसके बाद चेनला साम्राज्य आया, जो लगभग तीन सौ वर्षों तक सत्ता में रहा। चेनला को जल चेनला और थल चेनला में विभाजित किया गया। इस दौरान भारत के साथ कंबोडिया के व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत रहे।
खमेर साम्राज्य का स्वर्ण युग
खमेर साम्राज्य (802-1431 ई.) को कंबोडिया का स्वर्ण काल माना जाता है, जिसे जय वर्मन ने स्थापित किया। इसी समय अंगकोर वाट मंदिर का निर्माण हुआ, जो आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। प्रारंभ में यहां हिंदू धर्म का प्रभाव था, लेकिन बाद में बौद्ध धर्म ने प्रमुखता हासिल की।
थाईलैंड और वियतनाम का प्रभाव
1431 में थाईलैंड की अयुत्थया सेना ने अंगकोर वाट पर हमला किया, जिससे खमेर साम्राज्य का पतन शुरू हुआ। इसके बाद लगभग 250 वर्षों तक थाईलैंड (सायाम) और वियतनाम ने कंबोडिया पर कब्जा जमाया और इसकी राजनीति में हस्तक्षेप किया।
फ्रांस का उपनिवेश
1863 में कंबोडिया ने फ्रांसीसी सुरक्षा का सहारा लिया और यह फ्रेंच इंडोचाइना का हिस्सा बन गया। 1953 तक यह फ्रांस का उपनिवेश बना रहा।
जापान का कब्जा
द्वितीय विश्व युद्ध (1941-1945) के दौरान जापान ने भी कंबोडिया पर कब्जा किया। युद्ध के बाद फ्रांस ने फिर से शासन स्थापित किया, लेकिन जनता में स्वतंत्रता की मांग तेजी से बढ़ी।
कंबोडिया की स्वतंत्रता
9 नवंबर 1953 को कंबोडिया को फ्रांस से स्वतंत्रता मिली। आज़ादी के बाद देश ने राजनीतिक अस्थिरता, तख्तापलट और भीषण गृहयुद्ध का सामना किया।
खमेर रूज का आतंक
1975 से 1979 तक कंबोडिया में खमेर रूज की सत्ता रही, जिसका नेतृत्व तानाशाह पोल पॉट ने किया। इस दौरान लाखों लोगों की हत्या हुई। 1979 में वियतनाम ने हस्तक्षेप कर खमेर रूज को हटाया, और 1989 तक उसकी सेना वहां तैनात रही।
वर्तमान शासक और राजनीतिक स्थिति
कंबोडिया अब संवैधानिक राजतंत्र है। वर्तमान राजा नरोदम सिहामोनी हैं, जो 2004 से सत्ता में हैं। हून मानेट, जो पूर्व प्रधानमंत्री हून सेन के पुत्र हैं, 2023 से देश के प्रधानमंत्री हैं।
कंबोडिया की सीमाएं
कंबोडिया की सीमाएं निम्नलिखित देशों से मिलती हैं:
- पश्चिम और उत्तर में: थाईलैंड
- उत्तर में: लाओस
- पूर्व और दक्षिण-पूर्व में: वियतनाम
- दक्षिण में: थाईलैंड की खाड़ी
कंबोडिया की अर्थव्यवस्था
कंबोडिया एक विकासशील देश है जिसकी अर्थव्यवस्था कृषि, वस्त्र उद्योग, पर्यटन और निर्माण पर निर्भर है। चावल, रबर, मछली पालन और परिधान उद्योग इसके प्रमुख स्तंभ हैं। हालांकि, गरीबी, शिक्षा की कमी, भ्रष्टाचार और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी देश के सामने बड़ी चुनौतियां हैं।
थाईलैंड के साथ ताजा संघर्ष
विवाद का मुख्य केंद्र प्रेह विहार मंदिर है, जो सीमा पर स्थित है। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इसे कंबोडिया का हिस्सा माना था, लेकिन थाईलैंड ने इस फैसले को कभी स्वीकार नहीं किया। 2008-2011 के बीच कई बार दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़पें हुईं। अब एक बार फिर ये संघर्ष उग्र हो गया है।
भारत और कंबोडिया के रिश्ते
भारत और कंबोडिया के बीच प्राचीन काल से सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध रहे हैं। भारत से ही यहां हिंदू और बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। भारत ने 1952 में राजनयिक संबंध स्थापित किए और तब से कंबोडिया को शिक्षा, स्वास्थ्य, IT, और इन्फ्रास्ट्रक्चर में सहयोग देता आ रहा है। “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के तहत भारत कंबोडिया को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानता है।