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कजरी तीज: सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष पर्व और नीमड़ी पूजन का महत्व

कजरी तीज, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला एक विशेष पर्व है, जो विवाहित महिलाओं के लिए आस्था और सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त करती हैं। इस वर्ष कजरी तीज 11 अगस्त को प्रारंभ होकर 12 अगस्त को मनाई जाएगी। इस पर्व का एक अनूठा पहलू नीमड़ी पूजन है, जिसमें महिलाएं नीम की डाली को देवी मानकर उसकी पूजा करती हैं। जानें इस पर्व के महत्व और परंपराओं के बारे में।
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कजरी तीज: सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष पर्व और नीमड़ी पूजन का महत्व

कजरी तीज का महत्व

नई दिल्ली: भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला कजरी तीज व्रत अन्य तीजों में सबसे विशेष माना जाता है। यह पर्व विवाहित महिलाओं के लिए आस्था, समर्पण और सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत समाप्त करती हैं।


कजरी तीज की तिथि

इस वर्ष कजरी तीज का पर्व 11 अगस्त को सुबह 10:33 बजे प्रारंभ होगा और 12 अगस्त को सुबह 8:40 बजे समाप्त होगा। चूंकि तृतीया तिथि 12 अगस्त को सूर्योदय तक रहेगी, इसलिए इस दिन कजरी तीज का पर्व मनाया जाएगा।


तीज के प्रकार

भारतीय संस्कृति में तीज के तीन प्रमुख रूप हैं: हरियाली तीज, हरतालिका तीज, और कजरी तीज। इन सभी का उद्देश्य स्त्रियों के सौभाग्य और वैवाहिक सुख को बढ़ाना है, लेकिन कजरी तीज को विशेष महत्व दिया जाता है। इसका मुख्य कारण है 'नीमड़ी पूजन', जिसमें नीम को देवी के रूप में पूजा जाता है।


नीमड़ी पूजन की विशेषता

कजरी तीज का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नीमड़ी पूजन है, जिसमें महिलाएं नीम की डाली को देवी का स्वरूप मानकर उसकी पूजा करती हैं। कई स्थानों पर नीम की पत्तियों पर मिट्टी से बनी देवी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। महिलाएं इस पूजा में हल्दी, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी और सोलह श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करती हैं।


नीम का महत्व

मान्यता है कि नीम में देवी दुर्गा का वास होता है और इसका पूजन करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। नीम की शीतलता और औषधीय गुण तन और मन को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। इस पूजा के माध्यम से महिलाएं न केवल धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करती हैं, बल्कि यह परंपरा प्रकृति के प्रति भी एक संदेश देती है।


लोकगीतों का महत्व

कजरी तीज पर लोकगीतों का विशेष महत्व है। ये गीत वर्षा ऋतु, विरह, प्रेम और सावन के मनोभावों से भरे होते हैं। महिलाएं झूले पर बैठकर सामूहिक रूप से ये गीत गाती हैं, जो केवल मनोरंजन नहीं बल्कि सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और भावनात्मक एकता का माध्यम भी हैं।


विशेष श्रृंगार

इस दिन विवाहित महिलाएं विशेष रूप से हरी साड़ी, हरी चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी और मेहंदी आदि सोलह श्रृंगार करती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करती हैं।