कर्नाटक में अनोखा मंदिर: जहां कुत्तों की होती है पूजा
कुत्तों की पूजा का अनोखा मंदिर
भारत में धार्मिक स्थलों की परंपरा बहुत पुरानी और विविधतापूर्ण है। यहां देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ प्रकृति के तत्वों की भी पूजा की जाती है। कर्नाटक के चन्नापटना क्षेत्र में एक ऐसा मंदिर है, जहां देवी-देवताओं की मूर्तियां नहीं हैं, बल्कि कुत्तों की पूजा की जाती है। यही कारण है कि यह मंदिर श्रद्धा और जिज्ञासा का केंद्र बन गया है।
मंदिर का स्थान
यह मंदिर कर्नाटक के चन्नापटना शहर के अग्रहारा वलागेरेहल्ली गांव में स्थित है। स्थानीय भाषा में इसे नाई देवस्थानम कहा जाता है, जहां 'नाई' का अर्थ कुत्ता होता है। मंदिर परिसर में कुत्तों की मूर्तियां हैं, जिनकी नियमित पूजा की जाती है।
कुत्तों की पूजा की कहानी
स्थानीय लोगों के अनुसार, जब केम्पम्मा देवी के मंदिर का निर्माण हो रहा था, तब दो कुत्ते वहां आकर रहने लगे। वे मंदिर की सुरक्षा करते थे और गांव के लिए प्रतीक बन गए। मंदिर के निर्माण के बाद, वे अचानक गायब हो गए। बाद में, देवी ने एक ग्रामीण को स्वप्न में दर्शन देकर कुत्तों को याद करने का संकेत दिया। इसके बाद गांव वालों ने उनकी मूर्तियां स्थापित कीं।
लोगों की आस्था
स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह मंदिर गांव को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है। यहां प्रार्थना करने से चोरी या अन्याय का शिकार व्यक्ति को न्याय मिलता है। कुत्तों की पूजा से भय और बाधाएं दूर होती हैं, जिससे गांव और परिवार की सुरक्षा बनी रहती है।
धार्मिक मान्यता
हिंदू धर्म में कुत्तों को भगवान भैरव का वाहन माना जाता है। भैरव को सुरक्षा और न्याय का देवता माना जाता है। धार्मिक विद्वानों का मानना है कि कुत्तों की सेवा करने से भैरव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति अनजाने भय और संकट से सुरक्षित रहता है।
मंदिर का महत्व
यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह मानव और पशुओं के बीच सम्मान और सहअस्तित्व का संदेश देता है। धार्मिक समाजशास्त्रियों के अनुसार, ऐसे मंदिर स्थानीय संस्कृति और सामूहिक स्मृति को जीवित रखते हैं।
भविष्य की योजनाएं
हर साल यहां विशेष पूजा और आयोजन होते हैं। यह मंदिर अब धार्मिक पर्यटन का हिस्सा बनता जा रहा है, और प्रशासन तथा स्थानीय लोग इसे संरक्षित रखने के लिए प्रयासरत हैं।
