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कर्बला की लड़ाई: हुसैनी ब्राह्मणों की अद्भुत कहानी

कर्बला की लड़ाई, जो लगभग 1400 साल पहले हुई थी, न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि भारत के ब्राह्मणों के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस संघर्ष में इमाम हुसैन ने यजीद के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसमें भारतीय ब्राह्मणों ने उनका समर्थन किया। जानें इस ऐतिहासिक घटना के पीछे की कहानी और हुसैनी ब्राह्मणों की भूमिका।
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कर्बला की लड़ाई: हुसैनी ब्राह्मणों की अद्भुत कहानी

हुसैनी ब्राह्मण: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

हुसैनी ब्राह्मण: कर्बला वह स्थल है जहाँ मुसलमानों ने यजीद के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध लड़ा। यह एक ऐसा संघर्ष था जिसमें हुसैन साहब के परिवार के सभी सदस्य शहीद हो गए। कर्बला, जो इराक के बस्ता शहर में स्थित है, इस्लाम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह लड़ाई, जिसे लोग मुहर्रम के रूप में शोक मनाते हैं, केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के ब्राह्मणों के लिए भी महत्वपूर्ण है। लगभग 1400 साल पहले, यह लड़ाई इमाम हुसैन और यज़ीद के बीच लड़ी गई थी, जिसमें भारत के पंजाब से आए ब्राह्मणों ने भी इमाम हुसैन का समर्थन किया था। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक घटना की गहराई में। 


कठिन समय में समर्थन

680 ई. में, जब इमाम हुसैन और उनके अनुयायी यज़ीद की सेना का सामना कर रहे थे और 10 दिनों तक अत्याचार सहन कर रहे थे, तब राहाब सिद्ध दत्त और भारतीय ब्राह्मणों ने उनका साथ दिया। मोहयाल ब्राह्मणों में बाली, भीमवाल, छिब्बर, दत्त, लाउ, मोहन और वैद जैसी उपजातियाँ शामिल हैं, जिन्हें हुसैनी ब्राह्मण कहा जाता है। आज भी, हुसैनी ब्राह्मणों का एक वर्ग हिंदू परंपराओं के अनुसार मुहर्रम मनाता है।


यजीद की सेना से घिरे हुसैन

टीपी रसेल स्ट्रेसी ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ़ द मुहियाल्स: द मिलिटेंट ब्राह्मण क्लान ऑफ़ इंडिया' में एक गाथागीत का उल्लेख किया है, जिसमें अरब में दत्तों की उपस्थिति और कर्बला की लड़ाई में उनकी भूमिका का वर्णन किया गया है। कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन यज़ीद की सेना से घिरे हुए थे। इस्लाम को बचाने के लिए, हुसैन ने अपने बचपन के दोस्त हबीब और भारत के एक हिंदू मोहयाल राजा राहब सिद्ध दत्त को मदद के लिए पत्र लिखा। पत्र मिलने पर, हिंदुस्तानी पंडितों का एक समूह इमाम हुसैन की सहायता के लिए कर्बला की ओर बढ़ा।


हुसैनी मुसलमान कौन हैं?

शिया मौलाना जलाल हैदर नकवी के अनुसार, कर्बला की लड़ाई यजीद के अत्याचारों के खिलाफ इमाम हुसैन द्वारा लड़ी गई थी। इस संघर्ष में मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा यजीद के साथ था, जबकि जो सच्चाई के पक्ष में थे, वे हुसैन के साथ खड़े थे। इस प्रकार, भारत के ब्राह्मणों ने भी इमाम हुसैन का समर्थन किया।