कारगिल विजय दिवस: भारतीय सेना की शक्ति और साहस का प्रतीक

कारगिल विजय दिवस का महत्व
26 जुलाई 1999 को जब भारत ने कारगिल की बर्फीली चोटियों पर विजय प्राप्त की, तब देश ने अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए अदम्य साहस और बलिदान का परिचय दिया। आज, जब हम 26वां कारगिल विजय दिवस मना रहे हैं, यह केवल अतीत की याद नहीं है, बल्कि हाल ही में संपन्न ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का प्रमाण भी है।
कारगिल युद्ध की चुनौतियाँ
1999 का कारगिल युद्ध भारत के लिए एक नई चुनौती लेकर आया। पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने द्रास सेक्टर में ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के तहत तोलोलिंग, टाइगर हिल और बत्रा टॉप जैसी ऊंचाइयों को दुश्मन से मुक्त कराया। यह संघर्ष दो महीने से अधिक चला, जिसमें 500 से अधिक भारतीय सैनिक शहीद हुए और 1300 से अधिक घायल हुए।
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता
आज भारतीय सेना पहले से कहीं अधिक मजबूत और तकनीकी रूप से उन्नत हो चुकी है। हाल ही में पाकिस्तान द्वारा किए गए आतंकी हमले के जवाब में शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित कर दिया कि भारत अब केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि निर्णायक जवाब देने में सक्षम है। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने न केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर बल्कि पाकिस्तान के भीतर भी आतंक के ठिकानों को निशाना बनाया।
भारतीय सेना की आधुनिक क्षमताएँ
कारगिल युद्ध के समय भारतीय सेना बोफोर्स हॉवित्जर और मिग-21 जैसे संसाधनों पर निर्भर थी। आज, सेना के पास अत्याधुनिक हथियार और तकनीक हैं। धनुष और ATAGS जैसी स्वदेशी तोपों से लेकर SIG716 और AK-203 असॉल्ट राइफल्स तक, सेना अब कहीं अधिक घातक बन चुकी है।
सभी सेनाओं का समन्वय
आज थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बीच तालमेल पहले से कहीं बेहतर है। एकीकृत युद्धक्षेत्र प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से सभी सेनाएं तुरंत जानकारी साझा कर सकती हैं। ऑपरेशन सिंदूर इसका एक उदाहरण है, जिसमें तीनों सेनाओं ने मिलकर जवाबी हमला किया।
शहीदों को श्रद्धांजलि
कारगिल विजय दिवस केवल एक ऐतिहासिक जीत का स्मरण नहीं है, बल्कि यह भारतीय सेना की प्रगति और आत्मनिर्भरता का उत्सव भी है। 1999 से 2025 तक का यह सफर दर्शाता है कि भारत अब केवल दुश्मन के हमलों को झेलने वाला नहीं, बल्कि उन्हें रोकने और जवाब देने की क्षमता रखने वाला देश बन चुका है।