Newzfatafatlogo

कुरुक्षेत्र आरटीआई विवाद: 37,000 पन्नों का दावा, फिर भी अधूरी जानकारी!

कुरुक्षेत्र आरटीआई विवाद ने जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। आरटीआई कार्यकर्ता पंकज अरोड़ा ने 80,000 रुपये जमा करने के बावजूद अधूरी जानकारी मिलने की शिकायत की है। विभाग का दावा है कि उसने 37,000 पन्नों की जानकारी दी, लेकिन यह अधूरी है। इस विवाद ने सरकारी जवाबदेही और पारदर्शिता के मुद्दों को उजागर किया है। जानें इस मामले की पूरी कहानी और इसके पीछे की सच्चाई।
 | 
कुरुक्षेत्र आरटीआई विवाद: 37,000 पन्नों का दावा, फिर भी अधूरी जानकारी!

कुरुक्षेत्र आरटीआई विवाद: जानकारी की कमी पर उठे सवाल

कुरुक्षेत्र आरटीआई विवाद: 37 हजार पन्नों का दावा, 80 हजार जमा, फिर भी अधूरी जानकारी! कुरुक्षेत्र में जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ता पंकज अरोड़ा ने 80,000 रुपये जमा करने के बावजूद पूरी जानकारी न मिलने की शिकायत की है।


विभाग का कहना है कि उसने 37,000 से अधिक पन्नों की जानकारी उपलब्ध कराई है, लेकिन आरटीआई कार्यकर्ता इसे अधूरा मानते हैं। यह मामला पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। आइए, इस विवाद की पूरी कहानी को समझते हैं।


आरटीआई आवेदन और विभाग की लापरवाही


कुरुक्षेत्र आरटीआई विवाद की शुरुआत 30 जनवरी 2025 को हुई, जब पंकज अरोड़ा ने जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग में आरटीआई आवेदन किया। उन्होंने नियमानुसार पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से फीस जमा की। 3 फरवरी को विभाग ने दो पत्र जारी किए।


एक पत्र में 85,000 रुपये की मांग की गई, जबकि दूसरे में अधिकारियों को समय पर जानकारी देने का निर्देश दिया गया। हालांकि, पंकज ने 80,000 रुपये जमा किए, लेकिन विभाग ने इसे समय पर नहीं लिया। बैंक ने इसकी पुष्टि की। इसके बावजूद, विभाग ने पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई, जो लापरवाही का संकेत है।


शिकायतों का दौर और अधूरी जानकारी


पंकज अरोड़ा ने इस मुद्दे को उपायुक्त कुरुक्षेत्र के सामने उठाया। उपायुक्त ने अधिकारी सुमित गर्ग को सख्त निर्देश दिए, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। पंकज ने दो बार समाधान शिविर में शिकायत की, जिसके बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से संपर्क किया गया। फिर भी, 6 जून को विभाग ने अधूरी जानकारी दी और बाकी सवालों के जवाब गोल-मोल कर दिए।


पंकज का कहना है कि विभाग जवाबदेही से बचने की कोशिश कर रहा है। यह स्थिति आरटीआई के मूल उद्देश्य को कमजोर करती है। लोगों को लगता है कि उनकी आवाज को दबाया जा रहा है।


37 हजार पन्नों का दावा और सवाल


विभाग का दावा है कि उसने 37,000 से अधिक पन्नों की जानकारी दी है, लेकिन इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। पंकज ने सवाल उठाया कि इतने पन्नों की फोटोकॉपी का खर्च किसने उठाया।


कुरुक्षेत्र आरटीआई विवाद में यह सवाल अनुत्तरित है। यदि इसकी गहन जांच की जाए, तो विभाग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यह मामला पारदर्शिता और सरकारी जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठाता है। लोगों को सलाह दी जाती है कि वे आरटीआई के माध्यम से अपने अधिकारों की रक्षा करें।


कुरुक्षेत्र आरटीआई विवाद ने सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। यह मामला पारदर्शिता के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है।