केरल हाईकोर्ट का मानवीय फैसला: पिता को बेटी के वकील बनने के पल में शामिल होने की मिली छुट्टी

पिता की छुट्टी का मानवीय पहलू
नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने एक कैदी की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अत्यंत संवेदनशील और मानवीय निर्णय लिया है। अदालत ने एक पिता को उसकी बेटी के वकील के रूप में नामांकित होने के क्षण को देखने के लिए 5 दिनों की आपातकालीन छुट्टी दी है।
जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि भले ही याचिकाकर्ता एक दोषी है, लेकिन हर बच्चे के लिए उनका पिता एक नायक होता है। एक युवती अपने वकील बनने के सपने को साकार कर रही है और वह चाहती है कि इस महत्वपूर्ण अवसर पर उसका पिता उसके साथ हो। अदालत इन भावनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती।
हालांकि, सरकारी वकील ने इस छुट्टी का विरोध करते हुए कहा कि आपातकालीन छुट्टियां व्यक्तिगत आयोजनों के लिए नहीं दी जा सकतीं। लेकिन जस्टिस कुन्हीकृष्णन ने कहा कि इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
तवानुर केंद्रीय जेल में बंद एक दोषी ने 10 से 14 अक्टूबर के बीच छुट्टी मांगी थी, क्योंकि उसकी बेटी ने एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर ली थी और 11 व 12 अक्टूबर को उसका वकील के रूप में नामांकन होना था। जब जेल अधिकारियों ने उसकी छुट्टी की अर्जी खारिज कर दी, तो उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने बेटी की भावनाओं को समझते हुए जेल अधिकारियों को आदेश दिया कि पिता को 5 दिनों के लिए अस्थायी रूप से रिहा किया जाए।