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केरल हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी: भरण-पोषण में असमर्थ पुरुषों को बहुविवाह का अधिकार नहीं

केरल उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी का भरण-पोषण नहीं कर सकता, तो उसे दूसरी या तीसरी शादी करने का अधिकार नहीं है। यह टिप्पणी एक महिला द्वारा अपने दृष्टिहीन पति से गुजारा भत्ता मांगने के मामले में आई है। अदालत ने कुरान का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि बहुविवाह केवल तभी स्वीकार्य है जब पति अपनी पत्नियों के साथ न्याय कर सके। जानें इस निर्णय के पीछे की वजहें और इसके सामाजिक प्रभाव।
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केरल हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी: भरण-पोषण में असमर्थ पुरुषों को बहुविवाह का अधिकार नहीं

कोच्चि में हाईकोर्ट का निर्णय

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, तो उसे दूसरी या तीसरी शादी करने का अधिकार नहीं है। यह नियम मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत भी लागू होता है।


एक 39 वर्षीय महिला ने अपने 46 वर्षीय दृष्टिहीन पति से 10,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता मांगते हुए याचिका दायर की थी। महिला का आरोप था कि उसका पति भीख मांगकर जीवन यापन कर रहा है, पहली पत्नी के साथ रह रहा है और अब तीसरी शादी करने की धमकी दे रहा है। इससे पहले पारिवारिक न्यायालय ने महिला की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि जो व्यक्ति खुद भीख मांगकर जीवन यापन कर रहा है, वह भरण-पोषण देने की स्थिति में नहीं है।


कोर्ट की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि “जो पुरुष अपनी पहली पत्नी का भरण-पोषण नहीं कर सकता, उसे दूसरी या तीसरी शादी करने का अधिकार नहीं है।” अदालत ने यह भी कहा कि ऐसी शादियां मुस्लिम प्रथागत कानून के तहत भी स्वीकार्य नहीं हो सकतीं, क्योंकि वह पत्नियों का भरण-पोषण करने में असमर्थ है। कोर्ट ने यह भी बताया कि समाज में ऐसी शादियां शिक्षा और मुस्लिम प्रथागत कानून की जानकारी की कमी के कारण होती हैं।


कुरान की आयत का संदर्भ
अदालत ने कुरान का हवाला देते हुए कहा कि इस्लाम एक विवाह को सामान्य मानता है और बहुविवाह को केवल अपवाद के रूप में स्वीकार करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नियों के साथ न्याय कर सकता है, तभी एक से अधिक शादियां जायज हैं। अन्यथा नहीं।”