कैप्टन सौरभ कालिया के बलिदान की याद में पिता की न्याय की लड़ाई
कैप्टन सौरभ कालिया का बलिदान
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया 4-जाट रेजिमेंट के सदस्य थे। मई 1999 के तीसरे सप्ताह में, वे कारगिल के काकसर क्षेत्र में एक गुप्त निगरानी मिशन पर अपने पांच जवानों के साथ गए थे। लेकिन वे लापता हो गए, और पहली बार उनके बारे में जानकारी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के 'स्कर्दू रेडियो' पर मिली। 9 जून को, उनके और उनके साथियों अर्जुन राम, बनवार लाल, भीकाराम, मूला राम और नरेश सिंह के शव भारत को सौंपे गए। 10 जून को एक समाचार एजेंसी ने बताया कि पाकिस्तान ने भारतीय सैनिकों के साथ अत्याचार की सभी सीमाएं पार कर दी थीं। इन शवों में कई अंग गायब थे, आंखें निकाली गई थीं, और नाक, कान तथा गुप्तांग काट दिए गए थे। ऐसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय संधियों का गंभीर उल्लंघन माना। कैप्टन सौरभ कालिया के बलिदान को 26 साल हो चुके हैं, लेकिन उनके पिता आज भी पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके पिता का आरोप है कि पाकिस्तान ने जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन करते हुए उनके बेटे के साथ अमानवीय व्यवहार किया। आज कैप्टन कालिया का 49वां जन्मदिन है। इस अवसर पर उनके पिता डॉ. एन. कालिया (78 वर्ष) ने एक बार फिर अपने बेटे की वीरता को याद किया। वे अब भी न्याय की उम्मीद में हैं। डॉ. कालिया हिमालयन जैव संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान से सेवानिवृत्त वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे देश की न्याय प्रणाली और राजनीतिक नेतृत्व पर पूरा भरोसा है। मैं उम्मीद करता हूं कि इस जघन्य अपराध के दोषियों को एक दिन सजा जरूर मिलेगी।' पिता ने याद करते हुए कहा कि उनके अतुलनीय बलिदान ने पूरी कौम को जागरूक किया है और देशभक्ति की भावना को फिर से जीवित किया है।
पिता की न्याय की लड़ाई
कैप्टन सौरभ और उनके साथियों पर पाकिस्तान द्वारा किए गए अत्याचारों के खिलाफ डॉ. कालिया ने 2012 में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें मांग की गई थी कि सरकार पाकिस्तान के खिलाफ मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाए। जिनेवा कन्वेंशन युद्धबंदियों के साथ मानवीय व्यवहार की बात करता है, जिसमें यातना, हिंसा या किसी भी प्रकार की क्रूरता पर सख्त प्रतिबंध है। याचिका में यह भी बताया गया कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों को लगभग दो हफ्तों तक अमानवीय यातना दी गई, जिसकी पुष्टि 11 जून, 1999 की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हुई थी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उनके साहस, देशभक्ति और सहनशक्ति पर आज भी पूरा देश गर्व करता है। उनके परिवार को आज भी देशभर से भरपूर समर्थन और स्नेह मिलता है। डॉ. कालिया कहते हैं कि लोगों ने हमें बहुत प्रेम और सम्मान दिया है। भारत ही नहीं, विदेश से भी समर्थन मिला है। पालमपुर स्थित उनके घर में कैप्टन कालिया की याद में एक संग्रहालय भी बनाया गया है, जहां हर साल करीब 600-800 लोग आते हैं। वे बताते हैं कि अजनबी लोग कहते हैं कि हमने कैप्टन कालिया के बारे में बहुत सुना है, अब यहां आकर अच्छा लगा। कैप्टन कालिया की मां बहुत दुख को समेटे हुए हैं, लेकिन बेटे की शहादत पर गर्व करती हैं। ड्यूटी पर जाने से पहले कैप्टन कालिया ने मां से फोन पर कहा था, 'मां, तुम देखना, एक दिन ऐसा काम कर जाऊंगा कि पूरी दुनिया में मेरा नाम होगा।' उनकी यह बात सच साबित हुई। भारतीय सेना, उनका परिवार और देशवासी इस नाम को याद रखे हुए हैं।
पाकिस्तान की नापाक हरकतें
पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने हाल ही में पहलगाम में निर्दोष यात्रियों पर धर्म पूछकर गोलियां चलाई हैं, जिससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान सेना का मानवीय पक्ष कल भी कमजोर था और आज भी है। पाकिस्तान के इस नापाक चेहरे को बेनकाब करने के लिए डॉ. एन.के. कालिया (78 वर्ष) आज भी पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने के प्रयास कर रहे हैं। परमात्मा से प्रार्थना है कि डॉ. एन.के. कालिया के प्रयास सफल हों और पाकिस्तान को उसके किए की सजा मिले।
धर्म युद्ध की याद
हमारे पूर्वजों में युगों पहले महाभारत हुआ था, जिसे धर्म युद्ध के रूप में आज भी याद किया जाता है। उस समय भी युद्ध के नियम भीष्म पितामह ने बनाए थे। भारत ने 'ऑपरेशन सिन्दूर' के समय भी जो नीति या नियम अपनाए थे, वे धर्म युद्ध वाले थे, जबकि पाकिस्तान अधर्म की राह पर पहले भी था और आज भी है। भारत सरकार को कैप्टन सौरभ की वीरता तथा कुर्बानी को याद करते हुए डॉ. एन.के. कालिया द्वारा लड़ी जा रही लड़ाई में हर संभव सहायता करनी चाहिए। यह कदम कारगिल शहीदों के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि भी होगा।