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कोलकाता की गुलशन कॉलोनी: वोटर लिस्ट विवाद में राजनीतिक टकराव की नई कहानी

कोलकाता की गुलशन कॉलोनी में वोटर लिस्ट के विशेष गहन संशोधन (SIR) की प्रक्रिया ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। स्थानीय लोग इस कॉलोनी में एक लाख निवासियों का दावा करते हैं, जबकि वोटर लिस्ट में केवल कुछ हजार नाम हैं। टीएमसी और बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप ने इस क्षेत्र को चुनावी टकराव का नया केंद्र बना दिया है। स्थानीय लोगों की चिंताएं बढ़ रही हैं कि उनके नाम मतदाता सूची में बने रहेंगे या हट जाएंगे। जानें इस मुद्दे की गहराई और स्थानीय निवासियों की वास्तविकता।
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कोलकाता की गुलशन कॉलोनी: वोटर लिस्ट विवाद में राजनीतिक टकराव की नई कहानी

कोलकाता में गुलशन कॉलोनी का राजनीतिक विवाद


कोलकाता: कोलकाता के पंचाननग्राम क्षेत्र में स्थित गुलशन कॉलोनी एक बार फिर से राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बन गई है। वोटर लिस्ट के विशेष गहन संशोधन (SIR) की प्रक्रिया शुरू होते ही यहां हलचल तेज हो गई है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस कॉलोनी में लगभग एक लाख लोग रहते हैं, जबकि वोटर लिस्ट में केवल तीन से चार हजार नाम ही दर्ज हैं। यह बड़ा अंतर अब राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का कारण बन गया है।


गुलशन कॉलोनी की वास्तविकता

कॉलोनी की संकरी गलियां, जर्जर मकान और कम रोशनी वाली सड़कें यहां की वास्तविक स्थिति को दर्शाती हैं। यहां मजदूर, छोटे व्यापारी, किरायेदार परिवार और मुख्यतः अल्पसंख्यक समुदाय के लोग निवास करते हैं। कुछ साल पहले यह क्षेत्र चर्चा में आया था, जब एक स्थानीय पार्षद पर हमला करने वाला आरोपी इसी कॉलोनी से पकड़ा गया था।


अब जब SIR प्रक्रिया शुरू हुई है, तो माहौल फिर से तनावपूर्ण हो गया है। सुबह से ही लोग हेल्प सेंटर्स पर अपने दस्तावेज और फॉर्म से संबंधित जानकारी के लिए कतार में खड़े नजर आ रहे हैं। कई लोग खुद को बिहार-उत्तर प्रदेश से आए प्रवासी मजदूर बताते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि उन्हें अभी तक कोई फॉर्म नहीं मिला।


टीएमसी का पक्ष

तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि विपक्ष इस क्षेत्र के बारे में “नकारात्मक प्रचार” कर रहा है। टीएमसी नेता फ़रूक़ का दावा है कि यहां कम वोटर रजिस्ट्रेशन का कारण यह है कि बड़ी संख्या में लोग बाहर से आकर बसे हैं और कई अभी वोटर बनने की प्रक्रिया में हैं। उनका कहना है कि “अवैध घुसपैठ” का आरोप विपक्ष की राजनीतिक रणनीति है, जो वास्तविकता से परे है।


बीजेपी की प्रतिक्रिया

वहीं बीजेपी टीएमसी की बातों को मानने को तैयार नहीं है। पार्टी का कहना है कि यहां अधिकतर लोग बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी हैं, और यही वोटर संख्या में भारी अंतर का असली कारण है। प्रदेश अध्यक्ष शामिक भट्टाचार्य का कहना है कि SIR प्रक्रिया पूरी होने के बाद सच्चाई सामने आ जाएगी। दोनों पार्टियों के बीच बयानबाज़ी ने इस क्षेत्र को चुनावी टकराव का नया केंद्र बना दिया है।


स्थानीय लोगों की चिंताएं

इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बीच असमंजस साफ नजर आता है। एक चाय की दुकान पर बैठे अताउर रहमान बताते हैं कि वे दस साल पहले दिनाजपुर से रोजगार की तलाश में आए थे। उनका मानना है कि यहां विभिन्न राज्यों से आए मजदूर रहते हैं और असली स्थिति की जांच सरकार ही कर सकती है।


टीएमसी के सहायता कैंपों पर भीड़ दिखाई देती है। मीना अली नाम की महिला बताती हैं कि वह तोपसिया से यहां आई हैं, लेकिन अभी तक फॉर्म नहीं मिला। उन्हें डर है कि पते में बदलाव के कारण उनका नाम वोटर लिस्ट से हट न जाए।


कुछ लोग अपने दस्तावेज़ दिखाने में भी हिचकिचाते हैं। याक़ूब अली कहते हैं कि वे पहले राजाबाजार में रहते थे, अब यहां आ गए हैं, लेकिन उन्हें अपने नाम कटने की चिंता है। यह स्पष्ट है कि यहां प्रवासी मजदूरों की संख्या बहुत अधिक है, जिससे जनसंख्या और मतदाता संख्या का समीकरण स्वाभाविक रूप से बिगड़ जाता है।


राजनीति और वास्तविकता

बीजेपी जहां इस कॉलोनी को “बांग्लादेशी और रोहिंग्या बस्ती” बताने पर अड़ी है, वहीं टीएमसी इसे ध्रुवीकरण की कोशिश मानती है। SIR प्रक्रिया ने आगामी चुनावों से ठीक पहले इस कॉलोनी को एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। इस बीच स्थानीय लोगों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि उनके नाम मतदाता सूची में बने रहेंगे या हट जाएंगे।