क्या 1988 का भारत-पाक परमाणु समझौता अमेरिकी दबाव में हुआ था? जानिए पूरी कहानी

भारत-पाक परमाणु समझौते पर नई बहस
1988 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए परमाणु समझौते को लेकर भारतीय राजनीति में एक नई बहस शुरू हो गई है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इस समझौते को अमेरिकी दबाव में किया गया बताया है। उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भेजे गए एक कथित गोपनीय पत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत-पाक परमाणु वार्ता का एजेंडा अमेरिका ने निर्धारित किया था।
दुबे का आरोप
दुबे ने सोशल मीडिया पर साझा करते हुए कहा कि इस पत्र को पढ़ने के बाद उन्हें शर्मिंदगी महसूस हुई, क्योंकि भारत ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक के साथ बातचीत अमेरिकी दबाव में की थी। उनका कहना है कि यह पत्र स्पष्ट करता है कि 1988 का समझौता भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के खिलाफ था।
कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस ने इन आरोपों को खारिज करते हुए भाजपा पर पलटवार किया है। पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि यदि कोई ध्यान से रीगन का पत्र पढ़े, तो उसमें भारत से अफगानिस्तान के संदर्भ में सहयोग की अपील की गई थी, न कि दबाव। उन्होंने यह भी कहा कि आज के समय में अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के प्रधानमंत्री को धमकी देते हैं, जबकि मोदी जी चुप रहते हैं.
1988 का समझौता
1988 में 'गैर-परमाणु आक्रामकता समझौते' पर भारत और पाकिस्तान दोनों ने हस्ताक्षर किए थे। इसका उद्देश्य एक-दूसरे के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले से बचना और बाहरी हस्तक्षेप के बिना आपसी शांति बनाए रखना था। इस संधि को जनवरी 1991 में दोनों देशों की संसदों ने मंजूरी दी थी.
शीत युद्ध का संदर्भ
यह समझौता उस समय हुआ जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध अपने चरम पर था और वैश्विक स्तर पर परमाणु हथियारों पर नियंत्रण की कोशिशें की जा रही थीं। ऐसे में अमेरिका की भूमिका उस समय की व्यापक भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा थी, न कि किसी विशेष देश के पक्ष में हस्तक्षेप।