क्या COP सम्मेलन जलवायु संकट का समाधान है?
COP सम्मेलन की प्रासंगिकता
क्या जलवायु परिवर्तन पर आधारित कोप (COP) सम्मेलन वास्तव में प्रभावी है, या यह केवल एक दिखावा है?
यह सवाल अब एक स्थायी और चिंताजनक मुद्दा बन चुका है। क्या COP सम्मेलन से कोई वास्तविक परिवर्तन होता है? वर्तमान में, ब्राज़ील के बेले (Belém) में COP30 की तैयारियाँ चल रही हैं। यह सम्मेलन एक बार फिर से वादों का एक मंच बनकर उभरा है, जहाँ धरती के संकट के बीच नए फोटो-ऑप्स की व्यवस्था की जा रही है। COP का आरंभ एक उद्देश्य के साथ हुआ था, जहाँ सभी देशों के नेता एक साथ मिलकर पृथ्वी के भविष्य पर चर्चा करते थे। जलवायु परिवर्तन एक ऐसा संकट है जो राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार कर देता है, क्योंकि यह पूरी मानवता के अस्तित्व का सवाल है।
लेकिन जैसे-जैसे जलवायु संकट गहराता गया, COP का स्वरूप भी बदल गया। अब यह एक प्रदर्शन का मंच बन गया है, जहाँ महत्त्वाकांक्षाएँ और दिखावे की बातें होती हैं, जबकि वास्तविक कार्यान्वयन की कमी है।
यह सम्मेलन वादों का एक रंगमंच बन गया है, जहाँ ताली बजाने की अधिकता है, लेकिन जवाबदेही की कमी। फिर भी, हम हर साल इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए इकट्ठा होते हैं।
इस नवंबर, 6 से 21 तारीख तक, दुनिया बेलें में अमेज़न के किनारे एकत्रित होगी। शायद कोई और स्थान जलवायु कूटनीति के विरोधाभासों को इतनी स्पष्टता से नहीं दर्शाता। यह सम्मेलन दुनिया के सबसे नाज़ुक पारिस्थितिक तंत्र के बीच हो रहा है, जबकि इसके लिए संरक्षित वर्षावन को साफ किया गया है। सरकार इसे 'सस्टेनेबल' कहती है, जबकि संरक्षणवादी इसे विनाश का नाम देते हैं।
सम्मेलन से पहले ही इसकी दरारें स्पष्ट हो गई हैं, कि कौन बोल सकता है और किसकी आवाज़ दबाई जाएगी। इसके पीछे एक गहरा आर्थिक इंकार छिपा है।
इस साल का COP 'ग्लोबल साउथ COP' कहा जा रहा है, जो अमेज़न में हो रहा है। यह समावेश का वादा करता है, लेकिन समावेश समानता नहीं है। जब ग्लोबल साउथ कर्ज़ और जलवायु असमानता के बोझ के साथ आएगा, तो ग्लोबल नॉर्थ आंकड़ों और पॉवरपॉइंट्स के साथ आएगा।
COP30 में 'फ़ंडिंग फ़ॉर्मूले' पर चर्चा होगी, लेकिन मुआवज़े की बात नहीं होगी। कई छोटे देश, जो जलवायु त्रासदियों से जूझ रहे हैं, शायद सम्मेलन तक पहुँच भी न पाएं।
भारत को चाहिए कि वह केवल भाग न ले, बल्कि नेतृत्व करे। अगर भारत 'विश्वगुरु' बनना चाहता है, तो उसे अपने घर से शुरुआत करनी होगी।
जलवायु संकट अब एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। WHO और Lancet Countdown की रिपोर्ट बताती है कि बढ़ता वैश्विक तापमान हर मिनट एक जान ले रहा है।
अगर हर मिनट मरती एक ज़िंदगी भी कार्यवाही नहीं जगाती, तो फिर क्या करेगा? शायद एक और COP नहीं।
फिर भी, COP ही वे आखिरी मंच हैं जहाँ हर देश जीवित रहने की बहस में बैठता है।
तो क्या COP मायने रखते हैं? हाँ, अगर हम उन्हें मायने देने की हिम्मत करें।
