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क्या तालिबान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा से बदलेंगे दक्षिण एशिया के समीकरण?

तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा 9 अक्टूबर को होने जा रही है, जो कि किसी वरिष्ठ तालिबान नेता की पहली आधिकारिक यात्रा है। यह यात्रा भारत की कूटनीतिक सफलता को दर्शाती है, जबकि पाकिस्तान की कोशिशें इसे रोकने में विफल रही हैं। इस यात्रा से भारत को अफगानिस्तान में अपने हितों को सुरक्षित करने का अवसर मिलेगा और क्षेत्रीय समीकरणों में बदलाव की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह यात्रा दक्षिण एशिया की राजनीति पर गहरा असर डाल सकती है।
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क्या तालिबान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा से बदलेंगे दक्षिण एशिया के समीकरण?

अंतरराष्ट्रीय समाचार

International News: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी को भारत आने की अनुमति दे दी है। वह 9 अक्टूबर को भारत आएंगे। यह किसी वरिष्ठ तालिबान नेता की पहली आधिकारिक भारत यात्रा होगी। इस फैसले को भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है। पाकिस्तान, जो इस यात्रा को रोकना चाहता था, पूरी तरह असफल रहा। यह मंजूरी दिखाती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब भारत की भूमिका मजबूत हो रही है।


मुत्ताकी पर लगे प्रतिबंध

मुत्ताकी पर संयुक्त राष्ट्र के कई तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं। इनमें विदेश यात्रा पर रोक, संपत्ति जब्त करने और हथियारों पर रोक शामिल है। ऐसे में उन्हें अफगानिस्तान से बाहर जाने के लिए औपचारिक मंजूरी लेनी पड़ती है। पहले अगस्त में उनकी भारत यात्रा इसी वजह से रुक गई थी। इस बार मंजूरी मिलने के बाद यह साफ हो गया है कि अब दुनिया भी तालिबान से बातचीत को लेकर गंभीर है।


पाकिस्तान की नाकाम कोशिश

पाकिस्तान की नाकाम कोशिश

पाकिस्तान ने मुत्ताकी की भारत यात्रा रोकने की भरपूर कोशिश की थी। पिछली बार उसके दबाव के कारण ही सुरक्षा परिषद ने मंजूरी नहीं दी थी। मगर इस बार भारत ने पहले से तैयारी कर ली थी और कई देशों का समर्थन हासिल किया। पाकिस्तान की कूटनीतिक ताकत कमजोर साबित हुई। यह साफ हो गया कि दुनिया में पाकिस्तान का असर कम हो रहा है। अब उसकी रणनीति खुद उसके खिलाफ जाती दिख रही है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की साख लगातार गिरती जा रही है और तालिबान भी अब उस पर भरोसा नहीं करता।


भारत की बढ़ती भूमिका

भारत की बढ़ती भूमिका

भारत ने 2021 में तालिबान के काबुल आने के बाद धीरे-धीरे संपर्क बढ़ाए। भारत ने दूतावास खोला, दवाइयां और खाने-पीने का सामान भेजा और अफगान जनता की मदद की। इससे तालिबान नेताओं में भी भारत को लेकर सकारात्मक सोच बनी। अब यह यात्रा भारत को अफगानिस्तान में अपने हित सुरक्षित करने का मौका देगी। पाकिस्तान को यह सब नागवार गुजर रहा है। भारत की मदद ने आम अफगानी जनता का दिल भी जीता है। यही वजह है कि तालिबान भी भारत को अब एक मजबूत सहयोगी मान रहा है। यह बदलता माहौल भारत की विदेश नीति की जीत है।


पाकिस्तान की बढ़ती नाराज़गी

पाकिस्तान की बढ़ती नाराज़गी

पाकिस्तान ने 2021 में तालिबान की जीत का जश्न मनाया था। उसने इसे भारत की हार बताया था। लेकिन हालात बदलते गए और तालिबान-पाकिस्तान रिश्ते खराब होने लगे। सीमा विवाद, आतंकवाद और अविश्वास ने रिश्तों को बिगाड़ दिया। इसके उलट तालिबान भारत को भरोसेमंद साझेदार मानने लगे। यही कारण है कि अब पाकिस्तान पूरी तरह हाशिए पर है। आज तालिबान की कड़ी नीतियां पाकिस्तान को चुभ रही हैं। सीमा पार हमले और आतंकवादी समूहों पर रोक न लगाने की वजह से पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। यह सब उसकी नीतियों की विफलता दिखाता है।


भारत-तालिबान रिश्तों का असर

भारत-तालिबान रिश्तों का असर

इस यात्रा से दक्षिण एशिया की राजनीति पर बड़ा असर पड़ सकता है। यह दिखाता है कि तालिबान अब भारत के साथ सीधे जुड़ने को तैयार है। इससे भारत को अपने दीर्घकालिक हित सुरक्षित करने का मौका मिलेगा। वहीं पाकिस्तान की साख और कमजोर होगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले वक्त में यह बदलाव पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर असर डालेगा। इससे अफगानिस्तान को भी ज्यादा संतुलित अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाने का अवसर मिलेगा। चीन और अमेरिका भी इस बदलते समीकरण पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। आने वाले समय में भारत की भूमिका और भी मजबूत हो सकती है।


भारत-तालिबान बातचीत से आगे क्या

भारत-तालिबान बातचीत से आगे क्या

भारत में मुत्ताकी की मुलाकात विदेश मंत्री एस. जयशंकर से हो सकती है। दोनों देशों के बीच व्यापार, सुरक्षा और मानवीय मदद पर बातचीत होगी। भारत चाहता है कि अफगान धरती से आतंकवाद न फैले। तालिबान चाहता है कि उसे दुनिया से मान्यता और मदद मिले। यह यात्रा दोनों के रिश्तों में नया मोड़ ला सकती है। पाकिस्तान, हालांकि, हर कदम पर नजर रखेगा। भारत का ध्यान खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर और व्यापारिक निवेश पर भी रहेगा। तालिबान को भरोसा है कि भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अहम भूमिका निभाएगा। यही वजह है कि इस यात्रा को ऐतिहासिक माना जा रहा है।