क्या पाकिस्तान अपनी परमाणु क्षमता सऊदी अरब के साथ साझा करेगा? जानें इस नए रक्षा समझौते के बारे में

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का विवादास्पद बयान
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने हाल ही में एक चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर नई रक्षा संधि की आवश्यकता पड़ी, तो पाकिस्तान अपनी परमाणु क्षमताओं को सऊदी अरब के साथ साझा कर सकता है। यह पहली बार है जब किसी पाकिस्तानी मंत्री ने इस तरह का स्पष्ट बयान दिया है। बुधवार को सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बीच एक नई रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर भी शामिल थे।
संयुक्त रक्षा का नया ढांचा
आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान ने अपनी परमाणु क्षमताओं का विकास पहले ही कर लिया है और प्रशिक्षित बल तैयार हैं। उन्होंने बताया कि इस समझौते के तहत सभी क्षमताएं सऊदी अरब को उपलब्ध कराई जाएंगी। यदि किसी भी पक्ष पर हमला होता है, तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा और हम मिलकर इसका जवाब देंगे। यह एक छतरी व्यवस्था है, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे की रक्षा सुनिश्चित करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यह समझौता दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग को और मजबूत करेगा।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने इस घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारत और सऊदी अरब के बीच एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी है, जो पिछले वर्षों में और गहरी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को उम्मीद है कि यह साझेदारी आपसी हितों और संवेदनशीलताओं का ध्यान रखेगी। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने कहा है कि वह पाकिस्तान-सऊदी रक्षा समझौते के संभावित प्रभावों का अध्ययन कर रही है।
पाकिस्तान और सऊदी अरब के रक्षा संबंधों का इतिहास
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच रक्षा सहयोग का इतिहास कई दशकों पुराना है। 1967 में पहला रक्षा समझौता हुआ और 1982 में सुरक्षा सहयोग समझौते के माध्यम से इसे और मजबूत किया गया। इस दौरान एक समय पर 15-20 हजार पाकिस्तानी सैनिक सऊदी अरब में तैनात थे। 2017 में पूर्व पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ को सऊदी नेतृत्व वाले आतंकवाद विरोधी बल का कमांडर नियुक्त किया गया था। यह साझेदारी दोनों देशों के बीच सामरिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देती रही है।
क्षेत्रीय सुरक्षा पर प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि यह नया समझौता अमेरिका के क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता के रूप में पीछे हटने और इजरायल की आक्रामक कार्रवाइयों के बीच सामने आया है। पश्चिम एशिया में हालिया घटनाओं को देखते हुए, इस समझौते को इजरायल के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा और सामरिक मजबूती की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।