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क्या पाकिस्तान की कश्मीर नीति अमेरिका-चीन संतुलन में सफल होगी?

पाकिस्तान वर्तमान में कश्मीर मुद्दे को लेकर अमेरिका और चीन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। आर्मी चीफ असीम मुनीर की चीन यात्रा और उप-प्रधानमंत्री इशाक डार की अमेरिका यात्रा के माध्यम से पाकिस्तान अपनी बिगड़ती छवि को सुधारने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की यह रणनीति सफल हो पाएगी या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। क्या पाकिस्तान अपनी पुरानी आदतों से बाहर निकलकर ईमानदारी से अपनी नीतियों में बदलाव करेगा? जानिए इस लेख में।
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क्या पाकिस्तान की कश्मीर नीति अमेरिका-चीन संतुलन में सफल होगी?

पाकिस्तान का संतुलन बनाने का प्रयास

अंतरराष्ट्रीय समाचार: पाकिस्तान वर्तमान में चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। कश्मीर मुद्दा फिर से उसकी प्राथमिकताओं में शामिल है। आर्मी चीफ असीम मुनीर ने चीन का दौरा किया, जबकि उप-प्रधानमंत्री इशाक डार अमेरिका पहुंचे। इन यात्राओं का उद्देश्य पाकिस्तान की बिगड़ती छवि को सुधारना और वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत करना बताया जा रहा है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या ये प्रयास सफल होंगे या केवल दिखावे तक सीमित रहेंगे?


चीन से मिले समर्थन के संकेत

चीन से मिले भरोसे के संकेत


मुनीर की चीन यात्रा के दौरान, उन्होंने वहां के प्रमुख नेताओं से बातचीत की। चीन ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का समर्थन करता है। पाकिस्तान ने इसे अपनी सफलता के रूप में प्रस्तुत किया। आईएसपीआर ने एक प्रेस नोट जारी कर बताया कि दोनों देशों के बीच सैन्य और रणनीतिक संबंध पहले से अधिक मजबूत हुए हैं। हालांकि, पाकिस्तान पर 30 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज होने के कारण उसकी स्वतंत्र नीति का दावा कमजोर प्रतीत होता है।


इशाक डार का अमेरिका में मिशन

अमेरिका में इशाक डार का मिशन


इशाक डार ने वॉशिंगटन में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाकात की। इस दौरान पाकिस्तान ने अमेरिका से आर्थिक सहयोग और निवेश बढ़ाने की अपील की। डार ने अमेरिका को आश्वस्त किया कि चीन के साथ नजदीकी होने के बावजूद, पाकिस्तान वॉशिंगटन के साथ भी मजबूत संबंध चाहता है। उन्होंने कश्मीर मुद्दे को भी बैठक में उठाया, लेकिन अमेरिकी प्रतिक्रिया ठंडी रही, जिससे पाकिस्तान की उम्मीदें अधूरी रह गईं।


ट्रंप के रुख से पाकिस्तान की उम्मीदें

ट्रंप के रुख से पाकिस्तान की उम्मीदें


डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद पाकिस्तान को लगा कि हालात बदल सकते हैं। ट्रंप की पहली सरकार में पाकिस्तान को कम महत्व मिला था, लेकिन इस बार वे एशिया में नए समीकरण बना रहे हैं। पाकिस्तान मानता है कि ट्रंप की सख्त नीतियां चीन को घेरने के लिए उसे भी इस्तेमाल कर सकती हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ फिर से नजदीकी बढ़ाना चाहता है। हालांकि, यह खेल बहुत नाजुक है क्योंकि चीन और अमेरिका दोनों एक-दूसरे के प्रतिकूल हैं।


कश्मीर पर पाकिस्तान की पुरानी आदत

कश्मीर पर पाकिस्तान की पुरानी आदत


पाकिस्तान लंबे समय से कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता आ रहा है। लेकिन अब भारत की कूटनीति और वैश्विक छवि के कारण उसे समर्थन नहीं मिल रहा है। चीन का समर्थन भी केवल कागज़ पर रह जाता है, असलियत में बीजिंग अपने फायदे देखता है। पाकिस्तान जानता है कि जब तक कश्मीर मुद्दा जीवित रहेगा, तब तक उसकी राजनीति में इसे भुनाने का मौका मिलता रहेगा। यही कारण है कि हर बड़ा नेता कश्मीर का नाम लेकर दुनिया का ध्यान खींचने की कोशिश करता है।


चीन-अमेरिका के बीच फंसा पाकिस्तान

चीन-अमेरिका के बीच फंसा पाकिस्तान


आज की स्थिति यह है कि पाकिस्तान एक ओर चीन पर कर्जदार है और उसकी अर्थव्यवस्था भी उसी पर निर्भर है। दूसरी ओर, वह अमेरिका से मदद मांग रहा है, लेकिन वॉशिंगटन भारत को नाराज़ नहीं करना चाहता। ऐसे में पाकिस्तान का बैलेंस बनाना मुश्किल है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह रस्साकशी पाकिस्तान को और असुरक्षित बना सकती है। अगर वह चीन के करीब जाता है तो अमेरिका दूर होगा, और अमेरिका के करीब जाएगा तो चीन नाराज़ होगा।


आगे का रास्ता कितना मुश्किल

आगे का रास्ता कितना मुश्किल


आने वाले समय में अमेरिका और चीन के बीच तनाव और बढ़ने वाला है। ऐसे माहौल में पाकिस्तान कब तक दोनों का भरोसा बनाए रख पाएगा, यह बड़ा सवाल है। कश्मीर मुद्दा उठाकर वह अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति लेना चाहता है, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। दुनिया आतंकवाद पर पाकिस्तान के पुराने रिकॉर्ड को जानती है। ऐसे में पाकिस्तान को अगर बचना है तो उसे संतुलन नहीं, बल्कि ईमानदारी से अपनी नीतियां बदलनी होंगी। वरना उसका हर प्लान दुनिया के सामने खुल जाएगा।