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क्या भारत बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का प्रत्यर्पण करेगा?

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद, ढाका ने भारत से उनका प्रत्यर्पण मांगा है। यह मामला भारत के कानूनी ढांचे और द्विपक्षीय संधियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। क्या भारत इस अनुरोध को अस्वीकार कर सकता है? जानें इस जटिल कानूनी प्रक्रिया के बारे में और क्या संभावित कदम उठाए जा सकते हैं।
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क्या भारत बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का प्रत्यर्पण करेगा?

बांग्लादेश ने शेख हसीना का प्रत्यर्पण मांगा


नई दिल्ली: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को वहां के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने के बाद, ढाका ने औपचारिक रूप से भारत से उनके प्रत्यर्पण की मांग की है। इस घटनाक्रम ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है: क्या भारत अपने कानूनों और भारत-बांग्लादेश संधि के आधार पर इस अनुरोध को अस्वीकार कर सकता है?


भारत की प्रतिक्रिया

सोमवार को भारत ने स्पष्ट किया कि यह मामला पूरी तरह से कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया के दायरे में आता है, और दोनों देशों के बीच औपचारिक बातचीत आवश्यक है। विदेश सचिव ने कहा कि भारत इस अनुरोध की समीक्षा कर रहा है और इस प्रक्रिया में बांग्लादेश के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है।


ICT द्वारा सुनाई गई सजा

ICT ने शेख हसीना और उनके पूर्व गृह मंत्री को 2024 के विरोध प्रदर्शनों को दबाने में कथित भूमिका के लिए दोषी ठहराया है। इस फैसले के बाद बांग्लादेश में सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ा दिया गया है। राजधानी ढाका सहित कई क्षेत्रों में सेना, पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है ताकि किसी भी प्रकार की अस्थिरता को रोका जा सके।


क्या भारत प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है?

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रत्यर्पण संधियां सम्मान और विश्वास पर आधारित होती हैं। भारतीय कानून और भारत-बांग्लादेश समझौता नई दिल्ली को पर्याप्त अधिकार प्रदान करते हैं। यदि किसी अनुरोध में राजनीतिक प्रेरणा या न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होता है, तो भारत के पास प्रत्यर्पण रोकने का आधार है।


भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 के प्रावधान

भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम सरकार को निम्नलिखित अधिकार देता है:


1. यदि अनुरोध राजनीतिक प्रेरित या दुर्भावनापूर्ण हो, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।
2. कार्यवाही पर रोक लगाने या वांछित व्यक्ति को रिहा करने की शक्ति।
3. यदि प्रत्यर्पण से न्याय के हितों को नुकसान पहुँचता है, तो भारत ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं है।
4. धारा 31: जब प्रत्यर्पण निषिद्ध है।


किसी भी व्यक्ति को प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता यदि

1. आरोप राजनीतिक प्रकृति का हो,
2. अनुरोध का उद्देश्य राजनीतिक बदले की भावना हो,
3. विदेशी कानून अभियोजन में बाधा डालता हो।
यह भी प्रावधान है कि व्यक्ति पर भारत की सहमति के बिना किसी अन्य अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।


भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के मुख्य बिंदु

अनुच्छेद 6: राजनीतिक अपराधों पर रोक


यदि अपराध राजनीतिक माना जाए, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। हालांकि, हत्या, आतंकवाद या गंभीर हिंसक अपराधों को इस श्रेणी में नहीं रखा गया है।


अनुच्छेद 7: भारत खुद चला सकता है मुकदमा


यदि भारत चाहे, तो कथित अपराध के लिए व्यक्ति पर स्वयं मुकदमा चला सकता है और तब प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है।


अनुच्छेद 8: जब प्रत्यर्पण ‘अनुचित’ माना जाए


  • प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है यदि:
  • अपराध मामूली हो,
  • बहुत समय बीत गया हो,
  • या आरोप में सद्भावना न हो.


अनुच्छेद 21: अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं


संधि के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। निर्णय पूरी तरह द्विपक्षीय होगा।


अगला कदम क्या?

बांग्लादेश द्वारा औपचारिक अनुरोध भेजे जाने के बाद, भारत अब प्रत्यर्पण अधिनियम और द्विपक्षीय संधियों के प्रावधानों के अनुसार इसकी जांच कर रहा है। राजनीतिक उद्देश्य, न्यायिक निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया से संबंधित सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।