क्या विवाह बन गया है महिलाओं के लिए मौत का कारण? सांसद ने उठाई गंभीर चिंता
संसद में उठी आत्महत्या की चिंताजनक रिपोर्ट
नई दिल्ली: इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के राज्यसभा सांसद हरीस बीरन ने मंगलवार को संसद के उच्च सदन में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि देश में 1,71,418 आत्महत्याओं में से एक बड़ी संख्या विवाह से संबंधित तनाव और समस्याओं के कारण हुई है। सांसद ने इसे केवल आंकड़ों का मामला नहीं, बल्कि समाज और कानून व्यवस्था की सामूहिक विफलता करार दिया।
विवाह का पवित्र बंधन क्यों बन रहा है दुख का कारण?
सांसद बीरन ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र और सुखद अनुभव माना जाता है, लेकिन कई महिलाओं के लिए यह संबंध दर्द, अकेलेपन और मानसिक उत्पीड़न का कारण बनता है। उन्होंने बताया कि घरेलू सपोर्ट सिस्टम की कमी, दहेज की लालसा और भावनात्मक उपेक्षा महिलाओं को भीतर ही भीतर तोड़ देती है। यह पीड़ा अक्सर चुप्पी में दब जाती है, जिसका अंत आत्महत्या जैसे भयावह कदम के रूप में होता है।
दहेज उत्पीड़न: एक गंभीर समस्या
हरीस बीरन ने इस बात पर अफसोस जताया कि दशकों से सख्त कानून होने के बावजूद दहेज से जुड़ा उत्पीड़न आज भी नवविवाहित महिलाओं की अस्वाभाविक मौतों का एक बड़ा कारण बना हुआ है। उन्होंने कहा कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनी ढांचा मजबूत है, लेकिन इन कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा। कानून किताबों में हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है।
स्वास्थ्य और मानसिक दबाव की अनदेखी
सांसद ने महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं पर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म, गर्भावस्था और स्तनपान जैसे चरणों में हार्मोनल बदलाव महिलाओं की भावनात्मक स्थिति को प्रभावित करते हैं। ऐसे संवेदनशील समय में यदि उन्हें सहयोग और समझ नहीं मिलती, तो वैवाहिक तनाव और भावनात्मक दूरी स्थिति को और गंभीर बना देती है। यह अनदेखी कई बार महिलाओं को आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर कर देती है।
हर आत्महत्या का मतलब एक परिवार का टूटना
हरीस बीरन ने जोर देकर कहा कि आत्महत्या केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं होती, बल्कि इसके साथ पूरा परिवार बिखर जाता है और बच्चों के जीवन पर इसका गहरा असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि सिर्फ कानून बनाना काफी नहीं है, बल्कि उन्हें मानवीय संवेदनशीलता के साथ लागू करना जरूरी है। इसके लिए संस्थागत जवाबदेही, सामाजिक जागरूकता और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
खामोशी भी बन सकती है जानलेवा
अपने वक्तव्य के अंत में सांसद ने एक सख्त और भावुक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि उत्पीड़न हमेशा शारीरिक हिंसा के रूप में सामने नहीं आता। कई बार लगातार चुप्पी, भावनात्मक उपेक्षा और अनसुना किया जाना भी किसी की जान ले सकता है। उन्होंने सरकार और समाज से अपील की कि महिलाओं की इस 'खामोश चीख' को सुना जाए और समय रहते ठोस सुधार किए जाएं, ताकि ऐसे आंकड़े दोबारा देश को शर्मिंदा न करें।
