क्या है बिजली संशोधन बिल का किसानों पर प्रभाव? जानें इसके फायदे और चुनौतियाँ
बिजली क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक कदम
नई दिल्ली: भारत के बिजली क्षेत्र में लंबे समय से सब्सिडी, घाटे और अव्यवस्था का संकट बना हुआ है। इस अव्यवस्थित ढांचे में किसान अक्सर समस्याओं का सामना करते हैं। कागजों पर उन्हें सस्ती बिजली मिलती है, लेकिन वास्तविकता में उन्हें खराब सप्लाई, अनियमितता और कमजोर अवसंरचना का सामना करना पड़ता है।
बिजली (संशोधन) बिल इस विकृत चक्र को तोड़ने का प्रयास है। कुछ किसान संगठनों को शुल्क वृद्धि और निजीकरण का डर है, लेकिन बिल के प्रावधान एक अलग तस्वीर पेश करते हैं—एक ऐसा ढांचा जो किसानों को अधिक विश्वसनीय सप्लाई, मजबूत संरक्षण और पारदर्शी सब्सिडी प्रदान करता है। यह बिल टिकाऊ सुधार की दिशा में उठाया गया कदम है, जिसका सबसे बड़ा लाभ किसानों को मिलेगा।
किसानों के लिए भरोसेमंद बिजली आपूर्ति
कई दशकों से ग्रामीण भारत की सबसे बड़ी बिजली समस्या टैरिफ नहीं, बल्कि विश्वसनीयता रही है। किसान अक्सर आधी रात या सुबह-सुबह बिजली सप्लाई, वोल्टेज में उतार-चढ़ाव, मोटर के जलने की समस्या, पंपों का नुकसान और तीन-फेज सप्लाई में अनियमितता का सामना करते हैं।
इन समस्याओं का मुख्य कारण वित्तीय संकट से जूझती डिस्कॉम कंपनियां हैं, जो न तो नेटवर्क सुधार पाती हैं और न ही स्थिर सप्लाई दे पाती हैं।
बिल कैसे मदद करेगा: वित्तीय स्थिरता बढ़ने और सब्सिडी समय पर मिलने से डिस्कॉम को ग्रामीण फीडरों को अपग्रेड करने, वोल्टेज नियंत्रण सुधारने, आउटेज कम करने और बिजली सप्लाई को किसानों के अनुकूल समय पर देने का अवसर मिलेगा। बेहतर वित्तीय स्थिति सीधे बेहतर सेवा में बदलती है, और इसका पहला लाभ किसानों को मिलता है।
सब्सिडी को मजबूत बनाना
सबसे बड़ा भ्रम यह है कि बिल किसानों की सब्सिडी खत्म कर देगा। ऐसा बिल में कहीं नहीं कहा गया है। इसके विपरीत, बिल सब्सिडी को और पारदर्शी और जवाबदेह बनाता है। अब राज्यों को सब्सिडी सीधे डिस्कॉम को ट्रांसफर करनी होगी, टैरिफ में छुपाकर नहीं।
किसानों के लिए इसके फायदे: राज्य समय पर सब्सिडी देने के लिए बाध्य होंगे, डिस्कॉम वित्तीय संकट में नहीं फंसेंगे, बिजली कटौती या अनियमितता कम होगी, और सब्सिडी राजनीतिक घोषणा नहीं, बल्कि पक्की गारंटी बनेगी। इसका मतलब है—स्थिरता, न कि अनिश्चितता।
प्रतिस्पर्धा का अर्थ
कई लोगों को यह डर है कि वितरण में प्रतिस्पर्धा का मतलब निजीकरण है, लेकिन बिल कहीं भी राज्य की संपत्ति बेचने की अनिवार्यता नहीं बताता। प्रतिस्पर्धा का असली अर्थ है—कई सेवा प्रदाताओं का विकल्प, सेवा की गुणवत्ता में सुधार, प्रदर्शन का मूल्यांकन, और उपभोक्ताओं की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई।
किसानों के लिए असल मुद्दा यह नहीं है कि बिजली कौन दे रहा है, बल्कि यह है कि बिजली कैसी दी जा रही है—विश्वसनीय, सस्ती और समय पर या नहीं। जहां एकाधिकार विफल रहा, प्रतिस्पर्धा सुधार ला सकती है।
बिल के विरोध के बावजूद लाभ
कई किसान यूनियनों की चिंताएं जायज़ हैं—पूर्व नीतिगत अनुभवों ने भरोसा कमजोर किया है। लेकिन सुधारों को पूरी तरह नकारना किसानों को उसी पुरानी अव्यवस्था में फंसा रहने पर मजबूर करेगा। यह बिल पारदर्शी सब्सिडी, मजबूत सप्लाई और जवाबदेही वाले ढांचे की नींव रखता है।
किसान चाहें तो बिल को और मज़बूत बना सकते हैं। बिल का विरोध करने के बजाय किसान संगठन इन महत्वपूर्ण संशोधनों की मांग कर सकते हैं—कृषि सब्सिडी की कानूनी गारंटी, न्यूनतम तय घंटों की निर्बाध कृषि बिजली, वोल्टेज उतार-चढ़ाव और मोटर नुकसान पर मुआवजा, पारदर्शी शिकायत समाधान प्रणाली, और ग्रामीण बिजली ढांचे के समयबद्ध आधुनिकीकरण की गारंटी। ये सुझाव न केवल व्यावहारिक हैं, बल्कि किसानों के हित में अनिवार्य भी हैं।
निष्कर्ष: किसानों के लिए सशक्तिकरण की दिशा में कदम
वर्तमान व्यवस्था ने किसानों को केवल नुकसान दिया है—खराब सप्लाई, अनिश्चित समय, कमजोर ढांचा और लगातार अस्थिरता। बिजली संशोधन बिल इससे बाहर निकलने का मौका देता है। यदि इसे जिम्मेदारी के साथ लागू किया जाए, तो यह सुनिश्चित कर सकता है—अधिक विश्वसनीय बिजली, पारदर्शी सब्सिडी, उपकरणों की कम खराबी, ग्रामीण नेटवर्क में सुधार, और जवाबदेह और उपभोक्ता-केन्द्रित वितरण व्यवस्था।
यह किसानों पर बोझ डालने का नहीं, किसानों को सशक्त बनाने का रास्ता है। अवसर इस बात में है कि बिल को नकारा न जाए—बल्कि उसे ऐसा स्वरूप दिया जाए जो ग्रामीण भारत में वास्तविक परिवर्तन ला सके।
