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खेलकूद की कमी से बच्चों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव

हालिया अध्ययन से पता चला है कि खेलकूद से वंचित बच्चे भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में जल्दी हार मान लेते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि खेल केवल शारीरिक गतिविधि नहीं, बल्कि यह जीवन के महत्वपूर्ण पाठ भी सिखाते हैं। अध्ययन में शामिल बच्चों में डिप्रेशन और सामाजिक अलगाव की समस्या बढ़ी है। भारत में खेलकूद को शिक्षा का हिस्सा मानने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। जानें इस अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष और खेलों का महत्व।
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खेलकूद का महत्व और बच्चों पर प्रभाव

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि खेलकूद से वंचित बच्चे भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में जल्दी हार मान लेते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि खेल केवल शारीरिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह जीवन के महत्वपूर्ण पाठ भी सिखाते हैं। ये बच्चों को असफलता को स्वीकार करने, टीमवर्क, निरंतर सीखने और मानसिक संतुलन बनाए रखने की क्षमता प्रदान करते हैं। इस अध्ययन में 16 देशों के 6 से 17 वर्ष के 89 हजार बच्चों को शामिल किया गया। जिन बच्चों ने रोजाना 3 घंटे से अधिक मोबाइल का उपयोग किया और खेलकूद से दूर रहे, उनमें डिप्रेशन और एंग्जायटी का खतरा दोगुना पाया गया। 12 से 17 वर्ष के किशोरों में सामाजिक अलगाव की समस्या 41 प्रतिशत अधिक देखी गई। नियमित खेलों में भाग लेने वाले बच्चों की तुलना में निष्क्रिय बच्चों का बीएमआई औसतन 2.1 अंक अधिक रहा। खेलों में भाग लेने वाले बच्चों की सामाजिक अनुकूलन क्षमता 37 प्रतिशत बेहतर रही।


शोध की प्रमुख लेखिका डॉ. अमांडा थॉमसन का कहना है कि खेल बच्चों को असफलता से निपटना सिखाते हैं। जो बच्चे खेल के मैदान से दूर रहते हैं, वे मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं और असली जिंदगी की चुनौतियों में जल्दी हार मान लेते हैं। अध्ययन के अनुसार, भारत सहित कई विकासशील देशों में लाखों स्कूल ऐसे हैं, जहां खेलकूद को शिक्षा का हिस्सा मानने के बजाय पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। स्थिति यह है कि न तो वहां खेल का पीरियड निर्धारित होता है और न ही बच्चों के पास खेलने के लिए न्यूनतम साधन उपलब्ध हैं। कई स्कूलों में तो बच्चों के पास बुनियादी सुविधाएं जैसे बॉल, नेट या छोटे खेल उपकरण तक नहीं होते। इसके परिणामस्वरूप, अधिकांश बच्चों के जीवन से खेलकूद संबंधी गतिविधियां लगभग गायब हो जाती हैं। यूनेस्को के अनुसार, पिछले दो दशकों में विकासशील और गरीब देशों के स्कूलों में खेलकूद संबंधी गतिविधियां औसतन 40 प्रतिशत तक घट गई हैं।


भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में खेलकूद और कला को शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा बनाने पर जोर दिया गया है। नीति का स्पष्ट कहना है कि हर स्कूल को बच्चों के लिए खेल का पीरियड और पर्याप्त मैदान उपलब्ध कराना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रावधान केवल कागज पर नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे जमीनी स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।


खेल का मैदान मानसिक और शारीरिक विकास के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। खेल के मैदान में हार-जीत के बीच संतुलन बनाए रखने वाला खिलाड़ी जीवन की कठिनाइयों और खुशियों को सामान्य घटना मानकर अपनी भविष्य की यात्रा की योजना बनाता है। अनुशासन, दृढ़ संकल्प और मेहनत जैसे गुण खेल के मैदान में जीत के लिए आवश्यक हैं, और ये जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। खेल के मैदान में विकसित हुए ये गुण जीवनभर इंसान के सहायक बनते हैं।


विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन ने भी इस बात की पुष्टि की है। माता-पिता को अपने बच्चों को खेल के मैदान में ले जाने को प्राथमिकता देनी चाहिए। यहीं से बच्चे को प्रतियोगिता, सहयोग, सहनशीलता और कठिनाइयों का सामना करने की समझ मिलती है, जो सफल जीवन के लिए आवश्यक है। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ नागरिक ही एक मजबूत देश का आधार होते हैं।


मुख्य संपादक का संदेश

-इरविन खन्ना, मुख्य संपादक


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