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गया जी में पितृ पक्ष का अद्वितीय महत्व: माता सीता और गयासुर की कहानी

गया जी में पितृ पक्ष का महत्व अद्वितीय है, जहां लाखों श्रद्धालु पितरों के उद्धार के लिए आते हैं। माता सीता और गयासुर की कथा इस पवित्र नगरी की महिमा को दर्शाती है। जानें कैसे गया जी का इतिहास और धार्मिक महत्व आज भी जीवित है।
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गया जी में पितृ पक्ष का अद्वितीय महत्व: माता सीता और गयासुर की कहानी

गया जी का पितृ पक्ष में महत्व

गया जी में पितृ पक्ष का विशेष महत्व: माता सीता और गयासुर की कथा गया | पितृ पक्ष के दौरान पितरों के उद्धार के लिए गया जी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। फल्गु नदी के किनारे बसी यह पवित्र नगरी मोक्ष की भूमि मानी जाती है।


यहां पिंडदान करने से 108 कुलों और सात पीढ़ियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। रामायण और महाभारत में भी गया जी का उल्लेख मिलता है। हर वर्ष पितृ पक्ष में लाखों श्रद्धालु यहां पिंडदान के लिए आते हैं। आइए जानते हैं गया जी की महिमा और इससे जुड़ी रोचक कहानियां।


गया जी की उत्पत्ति की कथा

गया नगरी की कहानी गयासुर नामक असुर से जुड़ी हुई है। उसने ब्रह्माजी से तपस्या कर यह वरदान मांगा कि उसके दर्शन से लोग पापमुक्त हो जाएं।


जब लोग उसके दर्शन से पापों से मुक्त होने लगे, तो स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ गया। भगवान विष्णु ने गयासुर से यज्ञ के लिए उसका शरीर मांगा। यज्ञ के बाद विष्णु ने गयासुर को मोक्ष देते हुए कहा कि उसका शरीर जहां-जहां फैलेगा, वह स्थान पवित्र होगा। इस प्रकार गया नगरी का निर्माण हुआ।


रामायण और माता सीता की कथा

रामायण के अनुसार, जब राजा दशरथ का निधन हुआ, तब श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष में गया पहुंचे। राम और लक्ष्मण श्राद्ध सामग्री लेने गए, तब दशरथ की आत्मा ने सीता से पिंडदान की प्रार्थना की। सीता ने फल्गु नदी की रेत से पिंडदान किया और नदी, गाय, केतकी फूल और वटवृक्ष को साक्षी बनाया।


जब राम-लक्ष्मण लौटे, तो उन्होंने सीता की बात पर विश्वास नहीं किया। गवाहों में फल्गु नदी, गाय और केतकी ने झूठ बोला, लेकिन वटवृक्ष ने सच कहा। गुस्से में सीता ने नदी को सूखने, गाय को जूठन खाने और केतकी को पूजा से वंचित होने का श्राप दिया, जबकि वटवृक्ष को दीर्घायु का वरदान दिया।


श्राप का प्रमाण आज भी

आज भी फल्गु नदी में पानी नहीं है और पिंडदान रेत से होता है। गाय पूजनीय है, लेकिन जूठन खाती है और केतकी फूल पूजा में नहीं चढ़ता। वटवृक्ष आज भी अपनी दीर्घायु के लिए जाना जाता है।


सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

पितृ पक्ष के दौरान गया में विशाल मेला लगता है, जहां लाखों लोग पिंडदान और तर्पण के लिए आते हैं। गया न केवल हिंदुओं के लिए पवित्र है, बल्कि बौद्धों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पास में बोधगया में भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह शहर धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अनोखा केंद्र है।