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गया में पिंडदान का महत्व: मोक्ष की भूमि का रहस्य

गया, जो फाल्गु नदी के किनारे स्थित है, पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहां सर्वपितृ अमावस्या के दिन पिंडदान करने से 108 कुलों और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। पुराणों में गया का उल्लेख और भगवान विष्णु का निवास इसे मोक्ष की भूमि बनाता है। जानें गया में पिंडदान का महत्व और इसकी पौराणिक कथा के बारे में।
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गया में पिंडदान का महत्व: मोक्ष की भूमि का रहस्य

गया का धार्मिक महत्व

भारत में पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए कई महत्वपूर्ण स्थान हैं, लेकिन फाल्गु नदी के किनारे बसा गया शहर विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सर्वपितृ अमावस्या के दिन गया में पिंडदान करने से 108 कुलों और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। यहां श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए गया को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि प्राचीन गया में भगवान विष्णु पितृदेव के रूप में निवास करते हैं। इस लेख में हम गया में पिंडदान के महत्व पर चर्चा करेंगे।


गया में पिंडदान का महत्व

भारत में पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन इनमें से गया को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। यहां तर्पण विधि, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। यह भी उल्लेखनीय है कि गया में फाल्गु नदी के तट पर भगवान श्रीराम ने माता सीता के साथ राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था। महाभारत काल में पांडवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया था।


पुराणों में गया का उल्लेख

गरुड़ पुराण, वायु पुराण और विष्णु पुराण में गया शहर का उल्लेख मिलता है। इस तीर्थ स्थल पर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे मोक्ष की भूमि कहा जाता है। हर साल पितृपक्ष के दौरान गया में मेला लगता है, जिसे पितृपक्ष मेला कहा जाता है। यह स्थान हिंदुओं के साथ-साथ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी पवित्र है। बोधगया को भगवान बुद्ध की भूमि माना जाता है, जहां बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने कई मंदिरों का निर्माण किया है।


गयासुर की पौराणिक कथा

गयासुर नामक असुर ने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान मांगा कि उसका शरीर पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन से पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के बाद लोग पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन करके पाप मुक्त होने लगे। इससे स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ने लगा।


भगवान विष्णु का निवास

इस स्थिति से बचने के लिए देवताओं ने गयासुर के पास जाकर यज्ञ के लिए पवित्र स्थान मांगा। गयासुर ने अपना शरीर यज्ञ के लिए दे दिया, जिससे उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही स्थान तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां पहले 360 वेदियां थीं, लेकिन अब केवल 48 बची हैं। गया में भगवान श्रीहरि विष्णु गदाधर के रूप में विराजमान हैं। गयासुर के पवित्र शरीर में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और प्रपितामह निवास करते हैं, इसलिए इसे पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए उत्तम स्थान माना जाता है।