गर्मी के मौसम में मानसिक स्वास्थ्य पर असर: हीट एंग्ज़ायटी की बढ़ती समस्या

गर्मी और मानसिक स्वास्थ्य
गर्मी का मौसम अब केवल पसीने और थकान का कारण नहीं बनता, बल्कि यह मानसिक बेचैनी और चिंता को भी जन्म दे रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, हीट एंग्ज़ायटी एक ऐसी स्थिति है, जिसमें अत्यधिक गर्मी के चलते व्यक्ति बेचैनी, घबराहट, मूड स्विंग्स और नींद की कमी जैसी समस्याओं का सामना करता है। भारत में 2025 की गर्मी में डॉक्टरों ने युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं की पहचान की है, जो इस मुद्दे की गंभीरता को दर्शाती है.
हीट एंग्ज़ायटी के लक्षण
हीट एंग्ज़ायटी के शारीरिक लक्षणों में अत्यधिक पसीना, तेज़ धड़कन, चक्कर आना और उल्टी जैसा महसूस होना शामिल हैं। मानसिक रूप से, व्यक्ति चिड़चिड़ापन, चिंता या अकेलापन महसूस कर सकता है। कई लोग गर्मी के डर से बाहर जाने या सामाजिक आयोजनों में भाग लेने से कतराते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जिन लोगों को पहले से मानसिक समस्याएं हैं, उनके लक्षण गर्मी में और भी बढ़ जाते हैं। यहां तक कि जिनको पहले कोई समस्या नहीं थी, वे भी इस मौसम में उदासी या तनाव का अनुभव कर सकते हैं.
डिहाइड्रेशन और मानसिक स्वास्थ्य
विशेषज्ञों के अनुसार, गर्मी के मौसम में शरीर का पानी तेजी से निकलता है, जिससे डिहाइड्रेशन की समस्या उत्पन्न होती है। यह स्थिति शरीर और मन दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। थकावट, नींद की कमी और चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है, जो मानसिक स्थिति को और बिगाड़ देता है। गर्मी के कारण शरीर 'फाइट-ऑर-फ्लाइट' मोड में चला जाता है, जिससे एड्रिनलिन और कोर्टिसोल जैसे हार्मोन का स्तर बढ़ता है और मानसिक बेचैनी में इजाफा होता है.
भारत में हीट एंग्ज़ायटी का बढ़ता प्रकोप
भारत जैसे विकासशील देशों में, जो अधिकतर गर्म और नमी वाले क्षेत्रों में स्थित हैं, वहां गर्मी का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव अधिक गंभीर होता है। 2025 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मानसिक रोगों के मामले 1990 की तुलना में दोगुने हो चुके हैं। देश की बड़ी जनसंख्या अब भी मानसिक उपचार से वंचित है और सामान्य मानसिक रोगों का 80% इलाज नहीं हो पाता। 'लैंसेट' की एक स्टडी के अनुसार, 2025 तक भारत में मानसिक बीमारियों का बोझ 23% तक बढ़ सकता है, जिसका सीधा संबंध जलवायु से जुड़ी समस्याओं से है.
शहरी क्षेत्रों में स्थिति की गंभीरता
शहरी क्षेत्रों में, जहां जनसंख्या घनत्व अधिक है और हरियाली या ठंडी जगहों की कमी है, वहां 'हीट आइलैंड इफेक्ट' के कारण मानसिक समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं। डॉक्टरों का कहना है कि गर्मियों में हर दिन 100 से 150 मानसिक मामलों की रिपोर्ट होती है, जिनमें मुख्य रूप से एंग्ज़ायटी, मूड डिसऑर्डर और शारीरिक लक्षणों के साथ मानसिक परेशानी शामिल है। युवाओं में यह समस्या अधिक देखी जा रही है, क्योंकि वे पहले से ही शारीरिक बदलाव, डिजिटल तनाव और सामाजिक दबाव का सामना कर रहे होते हैं। बच्चे और बुज़ुर्ग भी अधिक प्रभावित होते हैं, क्योंकि उनकी शरीर की गर्मी से निपटने की क्षमता कम होती है.