ग़ाज़ा संघर्ष: एक युद्ध की अनकही कहानियाँ और मानवता का संकट

एक युद्ध का दो साल
दो साल पहले एक ऐसा युद्ध शुरू हुआ, जिसे पूरी दुनिया ने किसी न किसी रूप में देखा। यह युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि स्क्रीन पर भी नजर आया। हमने उस चमकदार स्क्रीन पर भय और त्रासदी को लाइव देखा और धीरे-धीरे इसे देखने की आदत बना ली।
हमले का दिन
सात अक्टूबर को जब हमास ने हमला किया, तो यह एक अप्रत्याशित घटना थी। सभी लोग हतप्रभ रह गए। कुछ ही घंटों में 1,200 से अधिक इजराइली मारे गए, जिनमें अधिकांश निर्दोष नागरिक थे। यह सब कुछ घरों, सड़कों और एक संगीत समारोह में हुआ।
बंदियों की कहानी
दुनिया ने देखा कि हमास के लड़ाकों ने युवा महिलाओं को बंदी बना लिया। उनमें से एक को निर्वस्त्र कर गाज़ा की गलियों में घुमाया गया। उसके परिवार को उसकी मौत की खबर तक नहीं थी, जबकि दुनिया ने सब कुछ देखा। एक पिता का दुख, जो अपनी अगवा बेटी के लिए कैमरे के सामने रो रहा था, सभी के दिलों को छू गया।
इजराइल का जवाब
इजराइल का जवाबी हमला तर्कसंगत लगा। बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी मिसाल का अनुसरण करते हुए कहा कि अगर अमेरिका 9/11 के बाद अल-कायदा को खत्म कर सकता है, तो इजराइल भी हमास को नष्ट कर सकता है। लेकिन इस तर्क के पीछे राजनीति की सुविधा छिपी थी।
गाज़ा में तबाही
इजराइली रॉकेटों ने गाज़ा की बस्तियों को तबाह कर दिया। कई परिवार एक ही हमले में समाप्त हो गए। अस्पतालों में अंधेरा छा गया और बच्चे मलबे में दब गए। यूनिसेफ के अनुसार, युद्ध के आरंभ के बाद से गाज़ा में 19,000 से अधिक बच्चे मारे गए या लापता हो गए।
पत्रकारों की त्रासदी
अल-जज़ीरा के पत्रकार वायल दहदूह ने मलबे के बीच खड़े होकर अपनी पत्नी और चार बच्चों की मौत की खबर दी। यह दृश्य दिल को दहला देने वाला था।
युद्ध का अनुत्तरित प्रश्न
दो साल बीत गए, और हर तस्वीर एक जैसी हो गई। इजराइल में खाली कुर्सियाँ और गाज़ा में मलबा। दोनों ओर से हर तस्वीर एक ही सवाल पूछती है — यह युद्ध अब क्या हासिल करना चाहता है?
शांति की कोशिशें
हालांकि यह सवाल अनुत्तरित है, राजनीति की मशीनरी चलती रहती है। शांति की बातचीतें फिर से शुरू होती हैं, लेकिन हर बार असफल होती हैं।
अमेरिकी शांति योजना
अब इजराइली सरकार और सेना अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 'गाज़ा शांति योजना' के पहले चरण की तैयारी कर रही है। लेकिन जैसे ही घोषणाएँ आईं, गाज़ा सिटी से फिर से धमाकों की आवाजें आईं।
इतिहास की सीख
अगर इतिहास बोल सकता, तो वह कहता कि युद्ध कभी भी उस तरह समाप्त नहीं होते जैसे उनके कर्ता चाहते हैं। हर युद्ध में नागरिकों को ही कीमत चुकानी पड़ती है।
मानवता की हार
इस युद्ध में कोई नहीं जीता। न इजराइल, न हमास, और न ही वह दुनिया जो खुद को शांति का मध्यस्थ मानती है। हम सब हार गए हैं।
ग़ाज़ा की त्रासदी
ग़ाज़ा की त्रासदी केवल इसलिए भयावह नहीं है कि यह हुई, बल्कि इसलिए है कि हमने इसे होने दिया।
हम सब का हिस्सा
क्या हम सब इस युद्ध का हिस्सा नहीं बन चुके हैं? चुपचाप देखकर, इसे 'स्पेक्टेकल' की तरह स्वीकार करते हुए।