गुजरात की रानी की वाव: एक ऐतिहासिक धरोहर
गुजरात के पाटन में स्थित रानी की वाव, एक अद्वितीय सीढ़ीदार बावड़ी है, जिसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में रानी उदयमती ने अपने पति की याद में करवाया था। यह न केवल जल संग्रहण की संरचना है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। रानी की वाव की स्थापत्य विशेषताएँ और कलात्मक नक्काशी इसे एक अद्भुत पर्यटन स्थल बनाती हैं। यहाँ हर साल हजारों पर्यटक आते हैं, और यह भारतीय संस्कृति का एक जीवंत उदाहरण है।
Sep 23, 2025, 18:47 IST
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रानी की वाव का परिचय
गुजरात के पाटन नगर में स्थित रानी की वाव, जिसे सीढ़ीदार बावड़ी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का एक अनमोल उदाहरण है। इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है और यह गुजरात आने वाले पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। यह केवल जल संग्रहण की संरचना नहीं है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और कलात्मक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
रानी की वाव का निर्माण 11वीं शताब्दी में सोलंकी वंश की रानी उदयमती ने अपने पति राजा भीमदेव प्रथम की याद में करवाया था। इसी कारण इसे "रानी की वाव" नाम दिया गया। यह संरचना प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है और उस युग की स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है।
स्थापत्य विशेषताएँ
रानी की वाव की लंबाई लगभग 64 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर और गहराई 27 मीटर है। इसमें सात मंजिलें हैं, जिनमें हर मंजिल पर सुंदर सीढ़ियाँ और चौक बनाए गए हैं।
बावड़ी की दीवारों पर लगभग 500 मुख्य मूर्तियाँ और 1000 से अधिक छोटी मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।
इन मूर्तियों में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतार, देवी-देवताओं, अप्सराओं, ऋषियों और दैनिक जीवन के दृश्य शामिल हैं।
इसकी एक विशेषता यह है कि जब कोई यात्री नीचे उतरता है, तो उसे ऐसा लगता है जैसे वह किसी भव्य मंदिर की ओर बढ़ रहा है।
कलात्मक सौंदर्य
बावड़ी की नक्काशी इतनी बारीक है कि पत्थरों पर बने चेहरे, आभूषण और मुद्राएँ जीवंत प्रतीत होती हैं। इसमें दशावतार (विष्णु के दस अवतार) की मूर्तियाँ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
वर्तमान स्थिति और पर्यटन
रानी की वाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है और हर वर्ष हजारों पर्यटक यहाँ आते हैं।
2014 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला और 2016 में इसे भारत के नए ₹100 के नोट की डिजाइन में भी शामिल किया गया।
यहाँ रानी की वाव फेस्टिवल भी आयोजित किया जाता है, जिसमें लोकनृत्य, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
कैसे पहुँचे?
निकटतम हवाई अड्डा: अहमदाबाद (लगभग 125 किमी)
रेलवे स्टेशन: मेहसाणा और पाटन
सड़क मार्ग: अहमदाबाद और गांधीनगर से पाटन तक सड़क द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
निष्कर्ष
रानी की वाव भारतीय शिल्पकला, स्थापत्य और संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण है। यह न केवल जल प्रबंधन का एक प्राचीन और वैज्ञानिक मॉडल है, बल्कि प्रेम, श्रद्धा और कला की जीवित मिसाल भी है। पाटन आने वाला हर यात्री इस धरोहर को देखकर भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा पर गर्व महसूस करता है।