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गुरु अर्जुन देव की शहादत: सिख धर्म का प्रेरणादायक इतिहास

गुरु अर्जुन देव की शहादत का दिन 30 मई 2025 को मनाया जाएगा, जो सिख धर्म के पहले शहीद की याद में है। इस दिन सिख समुदाय उत्साह के साथ गुरुद्वारों में एकत्रित होगा, जहां श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होगा और लंगर में मुफ्त भोजन वितरित किया जाएगा। गुरु अर्जुन देव जी का जीवन प्रेरणादायक है, जिन्होंने सिख धर्म को नई दिशा दी और स्वर्ण मंदिर की नींव रखी। उनकी शहादत सिखों के लिए गर्व का प्रतीक है।
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गुरु अर्जुन देव की शहादत: सिख धर्म का प्रेरणादायक इतिहास

गुरु अर्जुन देव की शहादत का दिन

गुरु अर्जुन देव की शहादत का पवित्र दिन 30 मई 2025 को मनाया जाएगा। यह दिन सिख कैलेंडर के जेठ महीने की 24वीं तिथि को आता है।


गुरु अर्जुन देव जी का योगदान

गुरु अर्जुन देव जी, जो सिख धर्म के पहले शहीद माने जाते हैं, की याद में यह दिन विशेष महत्व रखता है। सिख समुदाय में इस दिन को लेकर उत्साह है, जहां लोग गुरुद्वारों में एकत्रित होंगे। श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाएगा और लंगर में मुफ्त भोजन वितरित किया जाएगा।


गुरु अर्जुन देव का जीवन

गुरु अर्जुन देव जी का जन्म अप्रैल 1563 में गोइंदवाल में हुआ। उनके पिता गुरु रामदास और माता भानी थीं। गुरु अमरदास उनके नाना थे। 1581 में, 18 वर्ष की आयु में, वे पांचवें सिख गुरु बने। गुरु अर्जुन देव का इतिहास प्रेरणादायक है, जिन्होंने सिख धर्म को नई दिशा दी।


स्वर्ण मंदिर और गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना

गुरु अर्जुन देव जी ने 1604 में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी, जो उनकी दूरदर्शिता का प्रतीक है। उन्होंने गुरुद्वारे में चार दरवाजे बनवाए, जो सभी जातियों के लिए खुले थे। उसी वर्ष, उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया, जिसमें पिछले गुरुओं के लेखन शामिल थे।


मसंद प्रणाली और दसवंद का महत्व

गुरु रामदास द्वारा शुरू की गई मसंद प्रणाली को गुरु अर्जुन देव जी ने आगे बढ़ाया। उन्होंने सिखों से अपनी आय का दसवां हिस्सा दान करने की अपील की, जिसे दसवंद कहा जाता है। यह प्रथा सिख समुदाय को मजबूत करती है और आज भी प्रचलित है।


मुगल प्रताड़ना और शहादत

1606 में, मुगल सम्राट जहाँगीर ने गुरु जी को लाहौर किले में कैद किया और उन पर अत्याचार किए। उन्होंने कुछ भजनों को हटाने और जुर्माने की मांग की, लेकिन गुरु जी ने सत्य का साथ नहीं छोड़ा। अंततः उनकी शहादत हुई, जो सिखों के लिए गर्व का प्रतीक है।