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गुलजार का जन्मदिन: एक प्रेरणादायक यात्रा

गुलजार, हिंदी सिनेमा के महान गीतकार और कवि, का जन्मदिन मनाते हुए, हम उनकी प्रेरणादायक यात्रा पर नजर डालते हैं। संपूर्ण सिंह कालरा के नाम से जाने जाने वाले गुलजार ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। मुंबई में एक मैकेनिक के रूप में शुरूआत करने के बाद, उन्होंने साहित्यिक दिग्गजों से प्रेरणा लेकर फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई। आज भी, 83 साल की उम्र में, उनका जुनून और लेखनी की ऊर्जा बरकरार है। जानें उनके जीवन की कहानी और प्रेरणा।
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गुलजार का जन्मदिन: एक प्रेरणादायक यात्रा

गुलजार का जन्मदिन

गुलजार को जन्मदिन की शुभकामनाएं: हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार, कवि और फिल्म निर्माता गुलजार का असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है। आज, 18 अगस्त को, हम न केवल उनके जन्मदिन का जश्न मना रहे हैं, बल्कि भारतीय फिल्म उद्योग की एक प्रेरणादायक कहानी का भी सम्मान कर रहे हैं। आज वह गीतों और कहानियों की दुनिया के सबसे प्रमुख नामों में से एक हैं, लेकिन उनका सफर आसान नहीं रहा।


शुरुआत का संघर्ष

गुलजार ने अपने प्रारंभिक दिनों को मुंबई में एक मोटर गैराज में मैकेनिक के रूप में बिताया। वह कारों पर रंग चढ़ाने का कार्य करते थे और इसे संतोषजनक मानते थे। लेकिन, उनके भीतर हमेशा एक लेखक बनने की चाह थी। विभाजन के समय अधूरी रह गई शिक्षा और साहित्य से दूरी ने उन्हें कई वर्षों तक परेशान किया।


साहित्यिक दिग्गजों से प्रेरणा

साहित्यिक दिग्गजों से मुलाकात

मुंबई आने के बाद, गुलजार की मुलाकात कई प्रमुख लेखकों जैसे कृष्ण चंदर और अली सरदार जाफ़री से हुई। हालांकि उन्होंने किसी राजनीतिक दल से जुड़ने का प्रयास नहीं किया, लेकिन इन लेखकों की संगत ने उनके विचारों और लेखन को नई दिशा दी।


बिमल रॉय से मुलाकात

गीतकार शैलेंद्र के माध्यम से गुलजार की मुलाकात प्रसिद्ध फिल्मकार बिमल रॉय से हुई। यहीं से उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। उन्होंने 'बंदिनी' (1963) में 'मोरा गोरा अंग लाई ले' लिखा, जिसने उन्हें फिल्म उद्योग में पहचान दिलाई।


सिनेमा में करियर की शुरुआत

दिलचस्प बात यह है कि गुलजार ने शुरू में फिल्मों के लिए लंबे समय तक नहीं लिखने का निर्णय लिया था। लेकिन बिमल रॉय ने उन्हें समझाया कि मोटर गैराज में रहना उनके लिए सही नहीं है। यह सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए और यहीं से उन्होंने सिनेमा में अपने करियर को गंभीरता से अपनाया।


सफर जारी है

आज भी जारी है सफर

गुलजार का सफर केवल गीत लेखन तक सीमित नहीं रहा है। उन्होंने निर्देशन, पटकथा और संवाद लेखन में भी अपनी पहचान बनाई है। उनकी संवेदनशील लेखनी ने फिल्मों को नया आयाम दिया है। हाल के वर्षों में, विशाल भारद्वाज की फिल्म रंगून में भी उनके गाने सुनाई दिए हैं।

83 साल की उम्र में भी, गुलजार उसी जुनून और ऊर्जा के साथ लिखते हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सही प्रेरणा और मार्गदर्शन किसी की जिंदगी को बदल सकता है।