चंडीगढ़ में 3836 भगोड़ों का मामला: पुलिस की चुनौती

चंडीगढ़ में भगोड़ों की लंबी सूची
यूटी पुलिस ने 1967 से लेकर अब तक हत्या, किडनैपिंग, लूट, धोखाधड़ी और चोरी जैसे अपराधों में शामिल 3836 भगोड़ों का कोई सुराग नहीं लगा पाई है। इन मामलों का समाधान नहीं हो पाया है, जिससे पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय नहीं मिल सका है।
पुलिस रिकॉर्ड में भगोड़ों की स्थिति
पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार, इनमें से कई भगोड़ों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा, 20 एफआईआर रद्द करने की प्रक्रिया विभिन्न स्तरों पर लंबित है। कुछ फाइलें संबंधित थानों के एसएचओ के पास हैं, जबकि अन्य ड्यूटी मजिस्ट्रेट के स्तर पर पेंडिंग हैं।
भगोड़ों की पहचान में कठिनाई
पुलिस के पास आधे से अधिक भगोड़ों की पहचान नहीं है। इनमें से कोई भी फोटो या डिजिटल फुटप्रिंट उपलब्ध नहीं है। 2000 से पहले के भगोड़ों की तस्वीरें भी रिकॉर्ड में नहीं हैं।
स्पेशल पीओ सेल की भूमिका
भगोड़ों और पीओ घोषित आरोपियों को पकड़ने के लिए चंडीगढ़ पुलिस ने एक स्पेशल पीओ सेल का गठन किया है। पिछले दो वर्षों में, इस सेल ने 50 से अधिक भगोड़ों को गिरफ्तार किया है। पुलिस उन स्थानों पर छापे मारती है जहां भगोड़ों का पता है।
एक पुराना मामला: 35 साल बाद गिरफ्तारी
जनवरी 1989 में एक महिला के साथ लूटपाट के दौरान उसके 11 वर्षीय बेटे की हत्या कर दी गई थी। पीओ सेल ने आरोपी को अप्रैल 2024 में गिरफ्तार किया, जो साधु के भेष में रह रहा था। हालांकि, चश्मदीद गवाह उसे पहचान नहीं पाई।
हत्या के कुछ प्रमुख मामले
1982 में मिजोरम निवासी लाल खिलाना के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हुआ था। 1990 में चार आरोपियों को भगोड़ा करार दिया गया। 1998 में एक अन्य आरोपी भी भगोड़ा हो गया।
किडनैपिंग और चोरी के मामले
1977 में किडनैपिंग के मामले में हरविंद्र सिंह को भगोड़ा घोषित किया गया। 2008 में चोरी के मामले में 6 महिलाएं भगोड़ों की सूची में शामिल हैं।
पुलिस की चुनौतियाँ
पुराने मामलों में भगोड़ों को पकड़ना पुलिस के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि कई आरोपियों का कोई डिजिटल फुटप्रिंट नहीं है। कई भगोड़ों ने अपना रंग-रूप बदल लिया है, जिससे उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है।