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चंदा कोचर को मिला बड़ा कानूनी झटका, 60 करोड़ रुपये की रिश्वत का दोषी ठहराया गया

ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर को एक विशेष अदालत ने 60 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का दोषी ठहराया है। यह मामला वीडियोकॉन समूह को दिए गए 300 करोड़ रुपये के लोन से जुड़ा है। चंदा कोचर पर आरोप है कि उन्होंने लोन की मंजूरी के बदले रिश्वत ली। प्रवर्तन निदेशालय की जांच में यह खुलासा हुआ कि यह राशि मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए वैध दिखाने का प्रयास किया गया। यह निर्णय भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मुद्दों पर गंभीर सवाल उठाता है।
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चंदा कोचर को मिला बड़ा कानूनी झटका, 60 करोड़ रुपये की रिश्वत का दोषी ठहराया गया

चंदा कोचर का मामला

बैंकिंग क्षेत्र की एक प्रमुख शख्सियत रहीं ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर को हाल ही में एक महत्वपूर्ण कानूनी झटका लगा है। एक विशेष अदालत ने उन्हें वीडियोकॉन समूह को दिए गए 300 करोड़ रुपये के लोन में 60 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का दोषी पाया है। यह निर्णय वित्तीय अपराधों पर नियंत्रण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।


इस मामले की जड़ ICICI बैंक द्वारा वीडियोकॉन समूह को दिए गए लोन से जुड़ी है। आरोप है कि चंदा कोचर ने इस लोन को मंजूरी देने के बदले वीडियोकॉन के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत से रिश्वत के रूप में 60 करोड़ रुपये लिए। यह राशि उनकी कंपनी न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स में निवेश के रूप में ली गई, जो उनके पति दीपक कोचर के स्वामित्व में है।


प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले की गहन जांच की, जिसमें यह पाया गया कि लोन मिलने के तुरंत बाद, वेणुगोपाल धूत ने अपनी कंपनी सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स में 60 करोड़ रुपये का निवेश किया। ED के अनुसार, यह निवेश वास्तव में लोन के बदले दी गई रिश्वत थी।


इस मामले की शुरुआत केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की जांच से हुई, जिसने चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत को गिरफ्तार किया। इसके बाद, ED ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत अपनी जांच शुरू की। ED की जांच में यह सामने आया कि 60 करोड़ रुपये की राशि "अपराध की आय" थी, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए वैध दिखाने का प्रयास किया गया।


विशेष PMLA कोर्ट का यह निर्णय चंदा कोचर के लिए एक बड़ा कानूनी झटका है और यह दर्शाता है कि उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों को भी अपने कार्यों का जवाब देना पड़ता है। यह मामला भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मुद्दों पर कई सवाल उठाता है।