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चीन की विस्तारवादी नीतियों पर भारत का कड़ा रुख: दलाई लामा का उत्तराधिकारी और तिब्बत का महत्व

चीन की विस्तारवादी नीतियों ने वैश्विक चिंता को जन्म दिया है, और भारत को चाहिए कि वह इस पर कड़ा रुख अपनाए। दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के अवसर पर, उनके उत्तराधिकारी के चयन की प्रक्रिया और तिब्बत का महत्व भी चर्चा का विषय है। दलाई लामा की संस्था के भविष्य और चीन के संभावित हस्तक्षेप के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। जानें दलाई लामा की पहचान, उनके चयन की पारंपरिक प्रक्रिया और तिब्बत के बाहर दलाई लामा के जन्म के ऐतिहासिक उदाहरणों के बारे में।
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चीन की विस्तारवादी नीतियों पर भारत का कड़ा रुख: दलाई लामा का उत्तराधिकारी और तिब्बत का महत्व

चीन की विस्तारवादी नीतियों से वैश्विक चिंता

चीन की अन्य देशों की भूमि पर कब्जा करने की प्रवृत्ति ने पूरी दुनिया को चिंतित कर दिया है। जब भी उसे मौका मिलता है, वह मानचित्र पर अपनी सीमाओं को बढ़ाने की कोशिश करता है। यह उसकी आदत बन गई है, जिससे पड़ोसी देशों में असुरक्षा का माहौल बनता है। ऐसे में भारत और अन्य देशों को चाहिए कि वे चीन को कड़ा जवाब दें। केवल प्रतिक्रिया देना ही नहीं, बल्कि ऐसी रणनीतियाँ बनानी चाहिए, जिससे चीन को घेरने का अवसर मिले। तिब्बत इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। तिब्बत ने खुद भी चीन के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का मन बना लिया है, और अब केवल अगले दलाई लामा के ऐलान का इंतजार है। चीन को इस बात का डर है कि अगला दलाई लामा भारत से घोषित किया जा सकता है, जो उसकी मंशा के खिलाफ है।


दलाई लामा का 90वां जन्मदिन और उसकी महत्वता

दलाई लामा ने 2011 में कहा था कि वे तिब्बती लोगों और वरिष्ठ भिक्षुओं से परामर्श करेंगे कि क्या उनकी संस्था को जारी रखा जाना चाहिए। अपने 90वें जन्मदिन से पहले, उन्होंने हाल ही में एक बयान दिया जिसमें कहा गया कि यह संस्था किसी न किसी रूप में जारी रहेगी। इस सप्ताह धर्मशाला में एक महत्वपूर्ण बौद्ध सम्मेलन हो रहा है, जिसमें दलाई लामा का वीडियो संदेश आने की उम्मीद है। इस संदेश में उत्तराधिकार योजना का उल्लेख हो सकता है, जो चीन के संभावित हस्तक्षेप को देखते हुए महत्वपूर्ण है।


दलाई लामा की पहचान और भूमिका

दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता हैं और उन्हें करुणा के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का मानव अवतार माना जाता है। वर्तमान दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो का जन्म 1935 में हुआ था। उन्हें दो साल की उम्र में पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया और 1940 में आधिकारिक रूप से ल्हासा में स्थापित किया गया। दलाई लामा ने तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनीतिक अधिकार दोनों का संचालन किया है, लेकिन 1950 में चीन के नियंत्रण के बाद से वे धर्मशाला में निर्वासित जीवन जी रहे हैं।


दलाई लामा के चयन की पारंपरिक प्रक्रिया

नए दलाई लामा का चयन एक पवित्र प्रक्रिया है, जो तिब्बती बौद्ध विश्वास पर आधारित है। दलाई लामा के निधन के बाद, वरिष्ठ भिक्षु संकेतों और दर्शन की खोज करते हैं। वे दाह संस्कार से निकलने वाले धुएं की दिशा का अध्ययन करते हैं और सपनों की व्याख्या करते हैं। एक बार जब संभावित उत्तराधिकारी मिल जाता है, तो उसे दिवंगत दलाई लामा की वस्तुओं की पहचान करने के लिए कहा जाता है। सही पहचान को आध्यात्मिक पुष्टि के रूप में लिया जाता है।


वर्तमान दलाई लामा का चयन कैसे हुआ?

वर्तमान दलाई लामा की खोज इस प्रकार की गई थी। 13वें दलाई लामा के निधन के बाद, भिक्षुओं ने उनके शरीर की दिशा पर ध्यान दिया। ल्हामो ला-त्सो में दर्शन ने उन्हें तक्त्सेर गांव तक पहुँचाया, जहाँ एक छोटे लड़के ने पिछले दलाई लामा की वस्तुओं की सही पहचान की। उन्हें मान्यता दी गई और 14वें दलाई लामा के रूप में स्थापित किया गया। लेकिन आज इस प्रक्रिया को दोहराना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि चीन का हस्तक्षेप बढ़ गया है।


क्या कभी कोई दलाई लामा तिब्बत के बाहर पैदा हुआ है?

तिब्बत के बाहर दलाई लामाओं के जन्म के दो ऐतिहासिक उदाहरण हैं। चौथे दलाई लामा, योंतेन ग्यात्सो का जन्म 1589 में मंगोलिया में हुआ था, और छठे दलाई लामा, त्सांगयांग ग्यात्सो का जन्म वर्तमान अरुणाचल प्रदेश में हुआ था। दोनों को पारंपरिक व्यवस्था के तहत मान्यता दी गई थी, जिससे चीन के इस दावे को कमजोर किया जा सकता है कि अगला दलाई लामा केवल उसकी सीमाओं के भीतर ही जन्म ले सकता है।