चीन ने दलाई लामा के पुनर्जनन पर भारत के बयान पर जताया विरोध

चीन का कड़ा ऐतराज
चीन ने शुक्रवार (4 जुलाई) को भारत के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू के उस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि दलाई लामा का पुनर्जनन उनकी इच्छा के अनुसार होगा। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने भारत से तिब्बत से जुड़े मुद्दों पर सतर्क रहने और द्विपक्षीय संबंधों में सुधार को प्रभावित करने से बचने की अपील की।
रिजिजू का बयान और भारत का रुख
गुरुवार (3 जुलाई) को केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि दलाई लामा के उत्तराधिकार का निर्णय केवल तिब्बती बौद्ध धर्म की स्थापित संस्था और स्वयं दलाई लामा द्वारा किया जाएगा। उन्होंने कहा, “दलाई लामा का पुनर्जनन केवल स्थापित संस्था और तिब्बती बौद्धों के नेता द्वारा तय किया जाएगा, इसमें किसी और का हस्तक्षेप नहीं होगा।” यह बयान दलाई लामा के उत्तराधिकार पर भारत सरकार के किसी वरिष्ठ अधिकारी की पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया थी। रिजिजू, जो स्वयं एक बौद्ध हैं, और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह 6 जुलाई को धर्मशाला में दलाई लामा के 90वें जन्मदिन समारोह में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह समारोह पूरी तरह धार्मिक है और इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है।
दलाई लामा की घोषणा
बुधवार को तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा कि उनकी संस्था जारी रहेगी और 2015 में स्थापित गदेन फोड्रांग ट्रस्ट ही उनके भविष्य के पुनर्जनन को मान्यता देने का एकमात्र अधिकार रखेगा। उन्होंने कहा, “दलाई लामा की संस्था निरंतर बनी रहेगी, और केवल गदेन फोड्रांग ट्रस्ट को मेरे भविष्य के पुनर्जनन को मान्यता देने का अधिकार होगा।” इस घोषणा ने चीन के उस दावे को चुनौती दी, जिसमें उसने कहा था कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को उसकी मंजूरी लेनी होगी।
चीन का विरोध और 'गोल्डन अर्न' प्रक्रिया
चीन ने दलाई लामा के उत्तराधिकार योजना को खारिज करते हुए जोर दिया कि किसी भी भावी उत्तराधिकारी को उसकी मंजूरी लेनी होगी। माओ निंग ने कहा, “दलाई लामा और पंचेन लामा, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के दूसरे सर्वोच्च पुजारी हैं, का पुनर्जनन कठोर धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं के अनुरूप होना चाहिए, जिसमें घरेलू खोज, 'गोल्डन अर्न' से लॉट निकालना और केंद्रीय सरकार की मंजूरी शामिल है।” उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान 14वें दलाई लामा को भी इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ा था।
भारत-चीन संबंधों पर असर
माओ निंग ने भारत से तिब्बत से संबंधित मुद्दों पर सावधानी बरतने की मांग की। उन्होंने कहा कि भारत को 14वें दलाई लामा की “चीन-विरोधी अलगाववादी प्रकृति” को समझना चाहिए और शिजांग से संबंधित मुद्दों पर अपने वचनों का सम्मान करना चाहिए। माओ ने कहा, “भारत को अपने शब्दों और कार्यों में सावधानी बरतनी चाहिए, शिजांग से संबंधित मामलों में चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और चीन-भारत संबंधों के सुधार और विकास पर प्रभाव डालने से बचना चाहिए।” यह टिप्पणी भारत और चीन के बीच संबंधों को सामान्य करने की कोशिशों के बीच आई है।
तिब्बत मुद्दे पर भारत का दृष्टिकोण
भारत ने हमेशा तिब्बत को चीन का हिस्सा माना है, लेकिन दलाई लामा और तिब्बती समुदाय को धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता का समर्थन करता रहा है। रिजिजू के बयान ने भारत के इस रुख को और मजबूत किया कि दलाई लामा का उत्तराधिकार तिब्बती बौद्ध परंपराओं और उनकी इच्छा के अनुसार होना चाहिए। यह बयान न केवल दलाई लामा के प्रति भारत के सम्मान को दर्शाता है, बल्कि तिब्बती समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता को बनाए रखने की भारत की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है।
गदेन फोड्रांग ट्रस्ट की भूमिका
दलाई लामा द्वारा स्थापित गदेन फोड्रांग ट्रस्ट को उनके उत्तराधिकार की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है। यह ट्रस्ट तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुसार पुनर्जनन की प्रक्रिया को संचालित करेगा। दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि उनकी संस्था की निरंतरता और स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए यह ट्रस्ट ही अधिकृत होगा। यह घोषणा तिब्बती समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है।
भविष्य की संभावनाएं
दलाई लामा के 90वें जन्मदिन समारोह के अवसर पर भारत और तिब्बती समुदाय के बीच मजबूत संबंधों का प्रदर्शन होगा। रिजिजू और राजीव रंजन सिंह की उपस्थिति इस बात का प्रतीक है कि भारत तिब्बती बौद्धों के धार्मिक और सांस्कृतिक हितों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखेगा। दूसरी ओर, चीन का यह दावा कि दलाई लामा के उत्तराधिकार को उसकी मंजूरी की जरूरत है, भारत-चीन संबंधों में तनाव का एक नया बिंदु बन सकता है।