चुनाव आयोग की बड़ी कार्रवाई: 474 राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द

राजनीतिक दलों के पंजीकरण में सख्ती
चुनाव आयोग ने हाल ही में 474 गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द कर दिया है। यह निर्णय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत लिया गया है, जो यह निर्धारित करता है कि यदि कोई पंजीकृत दल लगातार छह वर्षों तक चुनावी प्रक्रिया में भाग नहीं लेता है, तो उसका पंजीकरण समाप्त किया जा सकता है। इससे पहले अगस्त में भी आयोग ने 334 दलों का पंजीकरण रद्द किया था। इस प्रकार, अगस्त से अब तक कुल 808 दलों की मान्यता समाप्त हो चुकी है।
छह वर्षों से निष्क्रिय दलों पर कार्रवाई
छह वर्षों से किसी चुनाव में नहीं ले रहे थे भाग
आयोग ने बताया कि कई पंजीकृत दल पिछले छह वर्षों से चुनावों में भाग नहीं ले रहे थे, फिर भी वे टैक्स छूट और अन्य लाभों का फायदा उठा रहे थे। आयोग ने स्पष्ट किया कि ये लाभ केवल सक्रिय दलों के लिए होते हैं, इसलिए निष्क्रिय दलों के खिलाफ कार्रवाई आवश्यक थी। राजनीतिक दलों के पंजीकरण से संबंधित दिशा-निर्देशों में यह प्रावधान है कि यदि कोई दल लंबे समय तक चुनावी गतिविधियों से दूर रहता है, तो उसका पंजीकरण समाप्त किया जा सकता है.
निष्क्रिय दलों पर कार्रवाई की प्रक्रिया
आयोग ने बताया कि 2019 से ही निष्क्रिय दलों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की गई थी। पहले चरण में 9 अगस्त को और दूसरे चरण में 18 सितंबर को कार्रवाई की गई। इन दोनों चरणों में कुल 808 राजनीतिक दलों का पंजीकरण समाप्त किया गया। यह कदम चुनावी पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है.
359 दलों की निगरानी
359 अन्य राजनीतिक दल निगरानी में
इसके अलावा, आयोग की निगरानी में 359 अन्य राजनीतिक दल भी हैं, जिन्होंने पिछले छह वर्षों में चुनाव तो लड़ा है लेकिन पिछले तीन वर्षों से अपनी वित्तीय ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है। आयोग ने इन दलों को भी नोटिस जारी कर चेतावनी दी है कि यदि समय पर वित्तीय विवरण नहीं दिए गए, तो उनके खिलाफ भी सख्त कदम उठाए जाएंगे.
राज्यों में पंजीकरण रद्द दल
चुनाव आयोग द्वारा रद्द किए गए 474 दल देश के 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पंजीकृत थे। इनमें सबसे अधिक 121 दल उत्तर प्रदेश से थे। इसके अलावा, महाराष्ट्र के 44, मध्य प्रदेश के 23, हरियाणा के 17, बिहार के 15 और पंजाब के 21 दलों का पंजीकरण भी समाप्त कर दिया गया है। आयोग का कहना है कि यह कदम लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने और चुनावी प्रणाली को दुरुस्त बनाए रखने के लिए उठाया गया है.