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छतरपुर : खजुराहो नृत्य महोत्सव में हुआ अभिनय का सौंदर्य और शुद्ध कथक का प्रदर्शन

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छतरपुर : खजुराहो नृत्य महोत्सव में हुआ अभिनय का सौंदर्य और शुद्ध कथक का प्रदर्शन


छतरपुर, 23 फ़रवरी (हि.स.)। खजुराहो बाल नृत्य महोत्सव का चौथा दिन ओडिसी और कथक नृत्य प्रस्तुतियों के नाम रहा। अपने गुरु की तालीम और साधना को बाल नृत्य कलाकार मंच पर जिस तरह साकार कर रहे हैं। इन्हें देख यह प्रतीत हो रहा है कि भारतीय संस्कृति की इस स्वर्णिम यात्रा में कई अनेक आभूषण भविष्य में जड़े जायेंगे। महोत्सव में रविवार की शाम की पहली प्रस्तुति ओडिसी की थी। जिसे प्रस्तुत कर रही थीं स्नेहा मिश्रा। स्नेहा ने अपने नृत्य की शुरुआत नवदुर्गा से की। अभिनय अंग के सौंदर्य को उन्होंने अपने नृत्य में बखूबी दिखाया। इसके बाद नोजा यमुना प्रस्तुत कर प्रस्तुति को विराम दिया।

इसके बाद अगली प्रस्तुति कथक की थी। सुप्रसिद्ध नृत्यांगना सुचित्रा हरमलकर की शिष्या विधि गाजरे ने अपनी गुरु परम्परा को नृत्य के माध्यम से दर्शाया। उन्होंने शुद्ध कथक के साथ अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की। जिसमें आमद। थाट। परने। प्रमिल।ए रायगढ़ घराने की परंपरा की रचनाएं और चक्कर। अंत में उन्होंने झूला गीत से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।

51वें खजुराहो नृत्य समारोह का चौथा दिन बहुत खास रहा। पहली बार आयोजित की जा रही प्रणाम प्रदर्शनी , व्याख्यान सह संवाद जिस महान नृत्यांगना के जीवन और कला अवदान पर केंद्रित है वे नृत्य के विद्यार्थियों से रूबरू हो रही थीं। वरिष्ठ नृत्यांगना एवं पद्मविभूषण डॉ.पद्मा सुब्रह्मण्यम, नृत्य संसार का एक ऐसा नाम है जिन्हें किसी पहचान की आवश्यकता नहीं। प्रणाम का पहला व्याख्यान सह संवाद रविवार को आयोजित किया गया।

डॉ.पद्मा सुब्रह्मण्यम ने संवाद करते हुए कहा कि मेरे जीवन और कला अवदान पर केंद्रित गतिविधि का आयोजन खजुराहो नृत्य समारोह जैसे श्रेष्ठ समारोह में किया। यह न सिर्फ किसी व्यक्ति बल्कि कला, परम्परा और कलाकार का सम्मान है। आज के जमाने में हमारी उम्र के लोग जब पाश्चात्य संस्कृति की ओर देखते हैं तो भारतीय संस्कृति का होना ही सबसे श्रेष्ठ मालूम होता है। हमारी नाट्य कला इतनी विस्तृत और समृद्ध है कि हम उन्हें भी दे सकते हैं, हमें उनसे कुछ लेने की आवश्यकता नहीं है। हमारे नाट्य का आधार हमारी परंपराएं हैं। ये केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर से जुड़ने का माध्यम हैं। नाट्य के लिए ज्ञान और प्रज्ञता जरूरी है। प्रज्ञता कौशल प्रदान करता है, लेकिन अभ्यास जरूरी है। भरतमुनि ने नाट्य शास्त्र रचा, यही कितनी अद्भुत बात है कि किसी मुनि ने नाट्य शास्त्र रचा। क्योंकि नाट्य का सम्बन्ध धर्म से है और धर्म को जाने बगैर नाट्य नहीं लिखा जा सकता। कला भी धर्म के लिए ही है। इसके बाद जयश्री राजगोपालन और अनुराधा विक्रांत ने डॉ.पद्मा सुब्रह्मण्यम की नृत्य संरचनाओं के विविध पक्षों पर व्याख्यान दिया।

हिन्दुस्थान समाचार / सौरव भटनागर