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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का भांग खेती पर बड़ा निर्णय

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भांग की खेती को वैध करने के लिए दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने न तो जनहित प्रदर्शित किया और न ही उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किया। इस निर्णय में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भांग की खेती केवल सरकारी प्राधिकरण के साथ ही संभव है। जानें इस मामले में कोर्ट ने क्या कहा और याचिकाकर्ता को क्यों फटकार लगाई गई।
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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का भांग खेती पर बड़ा निर्णय

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का निर्णय

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट: भारत सरकार कुछ मामलों में बेहद सख्त है, जिसमें ड्रग्स, गांजा, कोकेन और भांग जैसे नशीले पदार्थ शामिल हैं। इसलिए देश में इनका सेवन और बिक्री पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके बावजूद, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में भांग की खेती को वैध करने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे खारिज कर दिया।


भांग का औषधीय उपयोग

भांग नशे का कारण नहीं


इस याचिका में भांग की व्यावसायिक खेती के पक्ष में कई तर्क दिए गए। याचिका में ब्रिटिश कालीन रिपोर्ट और प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख करते हुए कहा गया कि इसका उपयोग औषधीय रूप से किया जाता है। इसके अलावा, भांग की खेती से राज्य के औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, जिससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। याचिका में यह भी कहा गया कि यदि भांग में T.H.C की मात्रा 0.3 प्रतिशत से कम है, तो यह नशे का कारण नहीं बनती।


कोर्ट का स्पष्ट संदेश

सरकार का अधिकार क्षेत्र


इस याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की पीठ ने की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कोई भी जनहित याचिका तब तक मान्य नहीं होगी जब तक उसमें व्यक्तिगत हित न हो। याचिकाकर्ता ने जनहित के नाम पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह मादक पदार्थों के नियंत्रण के मामले में सरकार को नीतिगत निर्णय लेने का निर्देश नहीं दे सकती। वर्तमान में, NDPS अधिनियम के तहत भांग की खेती पर प्रतिबंध है।


याचिकाकर्ता को फटकार

कोर्ट की सख्त टिप्पणी


कोर्ट ने आगे कहा कि भांग की खेती केवल सरकारी प्राधिकरण के साथ ही संभव है। याचिकाकर्ता ने न तो कोई जनहित प्रदर्शित किया है और न ही उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किया है। यह याचिका न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वाली मानी जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत जनहित में अधिकार क्षेत्र का आह्वान करने वाली याचिका नहीं है। हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता द्वारा जमा की गई सुरक्षा राशि जब्त करने का आदेश दिया है।